Janmashtami Special : अगर यह योद्धा होता महाभारत के युद्ध में शामिल तो निश्चित थी पांडवों की हार, भगवान श्रीकृष्ण ने रोका

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आ चूका हैं और पूरे देश में इस पर्व को खुशियों के साथ मनाया जाता हैं। आज इस पावन पर्व के मौके पर हम आपको महाभारत के युद्ध से जुडी एक कथा बताने जा रहे हैं जिसमें श्रीकृष्ण ने बर्बरीक नाम के योद्धा को युद्ध में शामिल नहीं होने दिया था। लेकिन श्रीकृष्ण ने ऐसा क्यों किया यह बहुत ही कम लोग जानते हैं। तो आइये आज हम बताते हैं आपको इसके पीछे का कारण।

जिस योद्धा को श्रीकृष्ण ने महाभारत में भाग नहीं लेने दिया वह योद्धा रिश्ते में श्रीकृष्ण के प्रपोत्र लगते हैं, नाम है – बर्बरीक। बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे थे। यानी भीम के पौते। भीम और श्रीकृष्ण आपस में मामा और बुआ के बेटे थे। इस नाते बर्बरीक, श्रीकृष्ण के पौते हुए। बर्बरीक ने कठोर तप करके भगवान शिव से तीन बाण प्राप्त किए थे। ये तीनों ही बाण अजेय थे। अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हो जाते तो चंद मिनटों में अपने तीन ही वाणों से पूरे युद्ध का परिणाम बदल देते।

बर्बरीक के बल और युद्ध कौशल के बारे में उनकी माता बहुत अच्छी तरह जानती थीं, क्योंकि उन्होंने ही बर्बरीक को युद्ध कौशल की शिक्षा दी थी। पराक्रमी बर्बरीक की शक्तियों का कभी दुरुपयोग न हो इसलिए उनकी माता ने उनसे बचन लिया था कि वह हमेशा हारते हुए पक्ष का साथ देंगे। क्योंकि पांडवों के साथ श्रीकृष्ण थे ऐसे में वह हार ही नहीं सकते थे। इस स्थिति में बर्बरीक कौरवों के कमजोर पड़ते ही बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ते। अगर ऐसा हो जाता तो पांडवों की हार निश्चित हो जाती।

अपनी माता से महाभारत में शामिल होने की अनुमति लेकिर बर्बरीक कुरुक्षेत्र के लिए निकल पड़े। जैसे ही श्रीकृष्ण को इस बात की जानकारी हुई, वह साधु का वेश बनाकर बर्बरीक से रास्ते में मिले और उनसे पूछा कि वह कहां जा रहे हैं। तब बर्बरीक ने अपना उद्देश्य बताया। साधु के रूप में आए कान्हा ने बर्बरीक से पूछा कि तुम्हारे पास तो केवल तीन ही वाण हैं, इनसे युद्ध कैसे जीतोगे? तब बर्बरीक ने बताया कि ये तीन बाण कितने शक्तिशाली हैं। तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से साधु को कुछ दान देने के लिए कहा। बर्बरीक ने पूछा कहिए आपको क्या चाहिए? तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका सिर मांग लिया।

साधु की मांग पर बर्बरीक अपना सिर देने के लिए तैयार हो गाए, लेकिन उन्होंने साधु से कहा कि ऐसा दान एक साधारण साधु तो नहीं मांग सकता, कृपया अपने वास्तविक रूप में आकर मुझे दर्शन दें। इस पर श्रीकृष्ण अपने रूप में आ गए। तब बर्बरीक ने कान्हा के सामने अपनी अंतिम इच्छा रखते हुए कहा कि मैं आपको अपना शीश भेंट करता हूं लेकिन मैं महाभारत का युद्ध भी अपनी आंखों से ही देखना चाहता हूं। इस पर कान्हा ने बर्बरीक के कटे हुए सिर को एक डंडे के सहारे पहाड़ी की चोटी पर लटका दिया। कान्हा की लीला से बर्बरीक जिंदा थे, पीड़ा रहित थे और बिना शरीर के पूरे महाभारत के गवाह बने।

जब युद्ध समाप्ति के बाद जब कान्हा ने बर्बरीक से पूछा कि आपने युद्ध में क्या देखा? तो बर्बरीक ने उत्तर दिया- प्रभु! इस पूरे युद्ध में सिर्फ एक ही व्यक्ति था और वह थे कृष्ण। इस युद्ध में मारा भी कृष्ण ने और मरे भी कृष्ण। अर्थात अर्जुन के दिशा निर्देशक कृष्ण थे और जितने भी योद्धा मारे गए उनकी आत्मा में भी कृष्ण थे। इस तरह श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को युद्ध में शामिल नहीं होने दिया और युद्ध से दूर रखकर जीवन का सार भी समझा दिया।