गणपति जी को भक्तों का प्रिय देवता माना जाता हैं। सभी इनकी भक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं। गणेशोत्सव के दिनों में तो यह भक्ति बड़ी धूमधाम के साथ देखने को मिलती हैं। गणपति विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव भी समाप्ति की ओर हैं। गणेशोत्सव के इन अंतिम दिनों में आज हम आपको गणपति जी के धूम्रवर्ण अवतार के बारे में बताने जा रहे हैं कि क्यों गणपति जी ने यह अवतार लिया। तो आइये जानते हैं गणपति जी के धूम्रवर्ण अवतार से जुडी पौराणिक कथा के बारे में।
एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए।
उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।