Janmashtami Special : जन्माष्टमी के उपलक्ष पर गीता ज्ञान जिसमे बताया गया हैं इंद्रियों पर संयम को श्रेष्ठ

जन्माष्टमी का त्योंहार पूरे देश में बड़ी ही खुशी के साथ मनाया जाता हैं। इस दिन सभी भक्त भगवान् कृष्ण की पूजा कर उनके गुणों को अपनाते हैं। इसलिए आज हम आपके लिए गीता ज्ञान से कुछ अध्यायों का सारांश लेकर आए हैं। जिनको जानकार आप इसे आत्मसात करते हुए अपने जीवन में उतार सकें। तो आइये जानते हैं भगवात गीता के कुछ अध्यायों का सारांश।

* चौथा अध्याय

इस अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस तरह से प्राप्त किया जा सकता है। यहीं गीता का वह प्रसिद्ध वचन है कि जब जब धर्म की हानि होती है तब तब भगवान का अवतार होता है।

* पांचवां अध्याय

पांचवा अध्याय कर्मसंन्यास योग नामक युक्तियां फिर से और दृढ़ रूप में कहीं गई हैं। इसमें कर्म के साथ जो मन का संबंध है, उसके संस्कार पर या उसे विशुद्ध करने पर विशेष ध्यान दिलाया गया है। यह भी कहा गया है कि एक स्थान पर पहुँचकर सांख्य और योग में कोई भेद नहीं रह जाता है। किसी एक मार्ग पर ठीक प्रकार से चले तो समान फल प्राप्त होता है। जीवन के जितने कर्म हैं, सबको समर्पण कर देने से व्यक्ति एकदम शांति के ध्रुव बिंदु पर पहुँच जाता है और जल में खिले कमल के समान कर्म रूपी जल से लिप्त नहीं होता।

* छठा अध्याय

छठा अध्याय आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही पता चलता है कि जितने विषय हैं उन सबमें इंद्रियों का संयम श्रेष्ठ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं।