मां दुर्गा का पावन पर्व शारदीय नवरात्रि जारी हैं और आज नवरात्रि का चतुर्थ दिन हैं जो कि मां कुष्मांडा के पूजा के लिए जाना जाता हैं। इन नौ दिनों में सभी भक्तगण मातारानी का आशीर्वाद पाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। इसी के साथ इन दिनों में कन्याओं का पूजन किया जाता हैं जिन्हें माता का स्वरुप माना जाता हैं। कन्या पूजन से देवी मां अत्यंत प्रसन्न होती हैं और आपके दुख दूर करती हैं। इसका पूर्ण लाभ पाने के लिए इससे जुड़े नियमों की जानकारी होना बहुत जरूरी हैं। तो आइए जानते हैं कि कन्या पूजन के दौरान किन बातों का ध्यान रखा जाए।
इस उम्र की कन्याओं को करें आमंत्रित
कन्या पूजन सप्तमी, अष्टमी या नवमी में किसी भी दिन किया जाता है। ख्याल रखें कि कन्याओं की उम्र 2 से 7 साल के बीच होनी चाहिए।
बालक को बुलाना न भूलें
कन्या पूजन में बालक को जरूर आमंत्रित करने का नियम है। कहा जाता है कि ऐसा न करने पर कन्या पूजन पूर्ण नहीं होता।
पानी और दूध से धोएं पैर
कन्या पूजन करने से पहले कन्याओं के पैर दूध या फिर पानी से अपने हाथों से साफ करें। इसके बाद उनके पैर छूकर उन्हें साफ स्थान पर बैठाएं।
ये बातें जरूर जान लें
कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम का तिलक लगाएं। कन्याओं को खीर-पूड़ी का प्रसाद खिलाएं। नमकीन में चना भी खिला सकते हैं।
ऐसे करें कन्याओं को विदा
कन्याओं को भोज कराने के बाद उन्हें दान में रूमाल, लाल चुनरी, फल और खिलौने देकर उनके चरण छुकर आर्शीवाद लें। इसके बाद कन्याओं को खुशी-खुशी विदा करें। ऐसा करने से मातारानी की कृपा और उनका आर्शीवाद आप के ऊपर हमेशा ही बना रहेगा।
नवरात्रि कन्या पूजन की यह है कथा
कथा मिलती है कि माता के भक्त पंडित श्रीधर की कोई संतान नहीं थी। एक दिन उन्होंने नवरात्र में कुंवारी कन्याओं को आमंत्रित किया। इसी बीच मां वैष्णों कन्याओं के बीच आकर बैठ गईं। सभी कन्याएं तो भोजन करके और दक्षिणा लेकर चली गईं लेकिन मातारानी वहीं बैठी रहीं। उन्होंने पंडित श्रीधर से कहा कि तुम एक भंडारा रखो और उसमें पूरे गांव को आमंत्रित करो। इसी भंडारे में भैरोनाथ भी आया और वहीं उसके अंत का आरंभ हुआ। मां ने भैरोनाथ का अंत करने के साथ ही उसका उद्धार किया।