आज 21 जुलाई के पावन दिन कामिका एकादशी का व्रत रखा जाएगा, मानो यह दिन स्वयं भगवान विष्णु के स्वागत के लिए सजा हो। इस कामिका एकादशी के दिन, चाहे आपने व्रत रखा हो या न रखा हो, कथा का पाठ करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है, जैसे यह एक पवित्र अनुष्ठान का ही हिस्सा हो। कामिका एकादशी के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा और उनकी महिमा का गुणगान करने वाली इस कथा का पाठ करने से व्यक्ति को अद्भुत लाभ मिल सकता है, मानो प्रभु की कृपा सीधे उस पर बरस रही हो।
कामिका एकादशी की कथाअर्जुन ने उत्सुकता से पूछा - हे मेरे प्रभु! आप मुझ पर कृपा करें और मुझे श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाएँ। इस पवित्र एकादशी का नाम क्या है? इसे करने की विधि क्या है? इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? और इसका उपवास करने से मनुष्य को आखिर किस फल की प्राप्ति होती है?
भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा - हे श्रेष्ठ धनुर्धर! मैं तुम्हें श्रावण माह की इस पवित्र एकादशी की कथा सुनाता हूँ, इसे तुम बहुत ध्यानपूर्वक सुनो। एक बार इस एकादशी की पावन कथा को लोक कल्याण के लिए स्वयं भीष्म पितामह ने देवर्षि नारदजी से कहा था।
एक समय नारदजी ने भीष्म पितामह से कहा - हे पितामह! आज मेरी प्रबल इच्छा है कि मैं श्रावण के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनूँ, अतः आप कृपा करके इस एकादशी की व्रत कथा का विधान सहित वर्णन करें।
नारदजी की इस पवित्र इच्छा को सुनकर भीष्म पितामह ने कहा - हे नारदजी! तुमने तो बहुत ही सुंदर प्रस्ताव किया है। अब तुम इसे बहुत ध्यानपूर्वक सुनो - श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका एकादशी है। इस एकादशी की कथा को केवल सुनने मात्र से ही, व्यक्ति को वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है, मानो उसने महान यज्ञ ही कर लिया हो। कामिका एकादशी के उपवास में शंख, चक्र, और गदा धारण करने वाले स्वयं भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा करते हैं, उन्हें गंगा स्नान के फल से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है, जैसे उनके सारे पाप धुल गए हों।
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में केदारनाथ और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, वह सारा पुण्य कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करने से ही प्राप्त हो जाता है, मानो आपको बिना प्रयास ही सब कुछ मिल गया हो।
भगवान विष्णु की श्रावण माह में भक्तिपूर्वक पूजा करने का फल तो समुद्र और वन सहित पूरी पृथ्वी दान करने के फल से भी अधिक होता है, जैसे यह एक अतुलनीय दान हो।
व्यतिपात योग में गण्डकी नदी में स्नान करने से जो फल मिलता है, वह फल भगवान की पूजा करने से सहज ही मिल जाता है, मानो प्रभु की कृपा सर्वोपरि हो।
इस संसार में भगवान की पूजा का फल सबसे अधिक है, अतः अगर भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा न भी बन सके, तो श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का उपवास ज़रूर करना चाहिए।
आभूषणों से सजी बछड़ा सहित गौदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सारा फल कामिका एकादशी के उपवास से ही मिल जाता है, जैसे आप ने महान पुण्य अर्जित कर लिया हो।
जो उत्तम द्विज श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का उपवास करते हैं और भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, उनसे सभी देवी-देवता, नाग, किन्नर, और पितरों की भी पूजा हो जाती है, मानो वे सबको प्रसन्न कर रहे हों। इसीलिए पाप से भयभीत होने वाले व्यक्तियों को विधि-विधान सहित इस उपवास को ज़रूर करना चाहिए।
संसार सागर तथा पापों में फँसे हुए मनुष्यों को इनसे मुक्ति पाने के लिए कामिका एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। कामिका एकादशी के उपवास से ही सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, इस संसार में पापों को नष्ट करने वाला इससे बढ़कर कोई अन्य उपाय नहीं है।
हे नारदजी! स्वयं भगवान ने अपने मुख से कहा है कि मनुष्यों को अध्यात्म विद्या से जो फल प्राप्त होता है, उससे भी अधिक फल कामिका एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। इस उपवास को करने से मनुष्य को न तो यमराज के दर्शन होते हैं और न ही उसे नरक के कष्ट भोगने पड़ते हैं। वह तो सीधे स्वर्ग का अधिकारी बन जाता है, मानो उसे मोक्ष मिल गया हो।
जो मनुष्य इस दिन तुलसीदल से भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे इस संसार सागर में रहते हुए भी इस प्रकार अलग रहते हैं, जिस प्रकार कमल का पुष्प जल में रहता हुआ भी जल से अछूता रहता है।
तुलसीदल से भगवान श्रीहरि का पूजन करने का फल एक बार स्वर्ण दान और चार बार रजत दान के फल के समान है, मानो आप ने सबसे बड़ा दान कर दिया हो। भगवान विष्णु रत्न, मोती, मणि आदि आभूषणों की अपेक्षा तुलसीदल से अधिक प्रसन्न होते हैं।
जो मनुष्य प्रभु का तुलसीदल से पूजन करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, मानो वे पवित्र हो गए हों।
हे नारदजी! मैं स्वयं भगवान की अति प्रिय श्री तुलसीजी को प्रणाम करता हूँ, जिनकी महिमा अपरंपार है।
तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और उनके शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है।
तुलसीजी को जल से स्नान कराने से मनुष्य की सभी यम यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। जो मनुष्य तुलसीजी को भक्तिपूर्वक भगवान के श्रीचरण-कमलों में अर्पित करता है, उसे सीधे मुक्ति मिलती है, मानो वह भवसागर पार कर गया हो।
इस कामिका एकादशी की रात्रि को जो मनुष्य जागरण करते हैं और दीप-दान करते हैं, उनके पुण्यों को लिखने में तो स्वयं चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं, मानो उनके पुण्य अनंत हों।
एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान के समक्ष दीपक प्रज्वलित करते हैं, उनके पितर स्वर्गलोक में अमृत का पान करते हैं, मानो उन्हें शांति मिल गई हो।
भगवान के समक्ष जो मनुष्य घी या तिल के तेल का दीप प्रज्वलित करते हैं, उनको सूर्यलोक में भी हज़ारों दीपकों का प्रकाश मिलता है, मानो उनकी आत्मा प्रकाशित हो गई हो।
कामिका एकादशी का व्रत प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए, क्योंकि यह सबके लिए कल्याणकारी है।
इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या जैसे सभी बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं, और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अंत में विष्णुलोक को जाता है। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण और पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं, भीष्म पितामह ने अपनी बात पूरी की।
भगवान श्रीहरि सर्वोपरि हैं। वे अपने भक्तों की निश्चल भक्ति से बहुत आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। तुलसीजी भगवान विष्णु की प्रिय हैं। भगवान श्रीहरि हीरे-मोती, सोने-चाँदी से इतने प्रसन्न नहीं होते, जितनी प्रसन्नता उन्हें एक छोटे से तुलसीदल के अर्पण करने पर होती है।