जगन्नाथ रथ यात्रा 2018 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान जगन्नाथ के लिए भोग सामग्री भेजी

पुरी में आज जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो गई है। भगवान जगन्नाथ नगर भ्रमण के लिए और अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए निकल गये हैं। इस भव्य यात्रा में शामिल होने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग पहुंचे हैं। बता दे, भगवान जगन्नाथ को विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है, जो 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं। पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यह हिन्दू धर्म के पवित्र चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। यहां के बारे में मान्यता है कि श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के रुप है और उन्हें जगन्नाथ (जगत के नाथ) यानी संसार का नाथ कहा जाता है। वही सालाना जगन्नाथ यात्रा की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान जगन्नाथ मंदिर में पारंपरिक नैवेद्य सामग्री भेजी है। प्रधानमंत्री पिछले कई वर्षों से मंदिर को रथ यात्रा से पहले नैवेद्य सामग्री भेजते रहे हैं।

मंदिर के प्रमुख पुरोहित दिलीपदासजी महराज ने कहा कि हमेशा की तरह प्रधानमंत्री ने अपने प्रतिबद्धता बनाए रखी और अंकुरित मूंग, जामुन, अनार और आम भेजे हैं। इनका भोज भगवान जगन्नाथ को लगाया जाएगा। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के दौरान उन्हें पारंपरिक रूप से अंकुरित मूंग और जामुन का भोग लगाया जाता है। भगवान जगन्नाथ की 141वीं रथ यात्रा जमालपुर क्षेत्र के जगन्नाथ मंदिर से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में आज निकलेगी।

विश्व की सबसे बड़ी रसोई में तैयार होता है भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद

जगन्नाथपुरी से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित है। जब से जगन्नाथ जी रथयात्रा आरंभ हुई है तब से ही राजाओं के वंशज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाली झाडू से भगवान जगन्नाथ जी के रथ के सामने झाडु लगाते हैं। जिसके बाद मंत्रोच्चार एवं जयघोष के साथ रथयात्रा शुरू की जाती है,पर अब पुरे भारत में कोई राजा नही होने की वजह से उनके स्थान पर पूरी में सामान्य तौर एक राजा बनाया जाता है जो की सोने की झाड़ू से मंदिर की सफाई करता है.इसके बाद ही भगवान को मन्दिर निकाला जाता है।

जिसके अनुसार यहां विश्व की सबसे बड़ी रसोई है, जिसमें भगवान जगन्नाथ के लिए भोग तैयार किया जाता है। दुनिया भर में जगन्नाथ मंदिर की रसोई के चर्चे हैं। इस विशाल रसोई में भगवान जगन्नाथ के लिए भोग तैयार किया जाता है। जिसे बनाने के लिए लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। बताया जाता है कि रसोई में जो भी भोग तैयार किया जाता है वह सब मां लक्ष्मी की देखरेख में होता है। हर दिन सभी रसोइये मिलकर 56 तरह के भोग बनाते हैं।

रसोई में बनने वाला हर पकवान को जैसा हिंदू धर्म पुस्तकों में बताया गया है वैसे ही बनाया जाता है। प्रसाद में किसी तरह के कोई बदलाव नहीं किये जाते। यह पूरी तरह से शाकाहारी होता है। भोग में किसी भी तरह से प्याज व लहसुन का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता। भगवान जगन्नाथ के लिए बनाए गये भोग को मिट्टी के बर्तनों में तैयार किया जाता है। रसोई के पास में दो कुएं हैं, जिन्हें गंगा और यमुना कहा जाता है। भोग बनाने के लिए सिर्फ इन्हीं से निकले पानी का इस्तेमाल किया जाता है। भोग पकाने के लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक दूसरे पर रखे जाते हैं और सारा का सारा प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले सबसे ऊपर रखे बर्तन की भोग सामग्री पकती है उसके बाद नीचे की तरफ एक के बाद एक भोग तैयार होता जाता है।

रथ पर चढ़ना, प्रतिमाओं को छूना एक अपराध

जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने श्रद्धालुओं को आगाह किया कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दौरान वे रथ पर नहीं चढ़ें और तीनों प्रतिमाओं को नहीं छूएं। यदि कोई रथ पर चढ़ता है और भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को छूता है, तो इसे एक अपराध माना जाएगा। केवल धार्मिक संस्कार संपन्न करने के लिए नियुक्त सेवक रथ पर चढ़ सकते हैं और भगवान की प्रतिमाओं को छू सकते हैं।