रवि प्रदोष व्रत से दूर होती हैं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां, जानें पूजन से जुड़ी जानकारी

आज चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी हैं और प्रदोष का व्रत हैं। रविवार होने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत के रूप में जाना जाता हैं। शास्त्रों में रवि प्रदोष व्रत का बड़ा महत्व माना गया हैं। इस व्रत से मनुष्य की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दूर होती हैं। इस व्रत में पूजन सूर्यास्त के समय करने का महत्व है। सायंकाल 05 बचकर 07 मिनट से 06:41 तक पूजन का मुहूर्त रहेगा। आज हम आपको रवि प्रदोष व्रत कि पूजन से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

कैसे करें व्रत

इस दिन प्रदोष व्रतार्थी को नमकरहित भोजन करना चाहिए। यद्यपि प्रदोष व्रत प्रत्येक त्रयोदशी को किया जाता है, परंतु विशेष कामना के लिए वार संयोगयुक्त प्रदोष का भी बड़ा महत्व है। अत: जो लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर हमेशा परेशान रहते हैं, किसी न किसी बीमारी से ग्रसित होते रहते हैं, उन्हें रवि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए।

पूजन सामग्री

एक जल से भरा हुआ कलश, एक थाली (आरती के लिए), बेलपत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद पुष्प व माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री।

पूजन विधि

रवि प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर शिवजी का पूजन करना चाहिए। प्रदोष वालों को इस पूरे दिन निराहार रहना चाहिए तथा दिनभर मन ही मन शिव का प्रिय मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करना चाहिए। तत्पश्चात सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करना चाहिए।

रवि प्रदोष व्रत की पूजा का समय शाम 4:30 से शाम 7।00 बजे के बीच उत्तम रहता है, अत: इस समय पूजा की जानी चाहिए। नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं, तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8‍ दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें। इसके बाद नंदीश्वर (बछड़े) को जल एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें। शिव-पार्वती एवं नंदकेश्वर की प्रार्थना करें।