आज 6 सितंबर को भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी हैं जिसे पद्मा, परिवर्तनी, कर्मा या जलझूलनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। पद्म पुराण में इस एकादशी को बहुत ही पुण्यदायी और लाभकारी बताया गया है। इस एकादशी का धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व है जो कि चतुर्मास के मध्य में पड़ती हैं और इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं। ऐसे में जिन लोगों ने देवशयनी के दिन भगवान को सुलाया है उन्हें भगवान की मूर्ति को करवट बदलकर दक्षिण दिशा की ओर करवट करके सुलाना चाहिए। इसके साथ ही मौसम भी करवट लेना शुरू करता है जिसका असर प्रकृति में भी दिखने लगता है। आज इस कड़ी में हम आपके लिए जलझूलनी एकादशी के मुहूर्त, महत्व, नियम और पूजाविधि की जानकारी लेकर आए हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...
एकादशी का शुभ मुहूर्तएकादशी तिथि का आरंभ 6 तारीख को सुबह 5 बजकर 55 मिनट पर हो रहा है और एकादशी तिथि का समापन 7 सितंबर को सुबह 3 बजकर 5 मिनट पर हो रहा है। इसलिए सभी के लिए एकादशी व्रत 6 सितंबर को ही मान्य होगा और 7 तारीख को सुबह 9:30 तक पारण कर लेना उत्तम रहेगा।
एकादशी पर बन रहे ये खास योगज्योतिष और पंचाग के अनुसार इस बार की पद्मा एकादशी पर बेहद खास 4 शुभ योग बन रहे हैं। ये चार शुभ योग इस प्रकार हैं, पहला आयुष्मान योग, दूसरा रवि योग, तीसरा त्रिपुष्कर योग और चौथा सौभाग्य योग। ऐसा कहा जाता है कि इन 4 योग में से किसी भी एक योग में की गई भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है।
एकादशी का महत्वविष्णु पुराण में पद्मा एकादशी का महत्व सर्वाधिक खास माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जाने या अनजाने में हुए पापों से मुक्ति पाने के लिए पद्मा एकादशी का व्रत सबसे खास माना जाता है। पापों से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत जैसा उत्तम और कोई दूसरा उपाय नहीं है। माना जाता है कि इस एकादशी के दिन श्रीहरि का ध्यान करने वाले व्यक्ति को हर प्रकार के सुखों की प्राप्ति के साथ अंत में मोक्ष भी प्राप्त होता है।
एकादशी के नियमपरिवर्तनी एकादशी का व्रत रखने वाले को द्वादशी के दिन सुबह में भगवान की पूजा करके यह मंत्र बोलना चाहिए 'वासुदेव जगन्नाथ प्राप्तेयं द्वादशी तव। पार्श्वेन परिवर्तस्व सुखं स्वापिहि माधव।।' इस तरह भगवान से प्रार्थना करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए। इस एकादशी को राजस्थान में जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्म पुराण में बताया गया है कि परिवर्तनी और जल झूलनी एकादशी मंगलवार के दिन हो और बुधवार को पारण हो साथ में श्रवण नक्षत्र भी मिल जाए तो यह व्रत बहुत ही उत्तम फल देने वाला होता है। इस बार मंगलवार को परिवर्तनी और जल झूलनी एकादशी एकादशी है और इसका पारण बुधवार को होगा इसलिए इसका महत्व काफी है।
एकादशी व्रत की पूजाविधिपद्मा एकादशी के दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान करें। पीले वस्त्र धारण करें और लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर वहां पर केले का पत्ता लगाएं और उसके साथ ही चौकी पर पीला वस्त्र, पीले फूल, तुलसी दल और चरणामृत अर्पित करें। इसके बाद मन ही मन श्रीहरि का ध्यान करते हुए एकादशी का व्रत करने का संकल्प लें। उसके बाद पूरे दिन व्रत करके सायंकाल आप फलाहार ले सकते हैं। अगले दिन स्नान करने के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न, वस्त्र और छाता व जूते दान करें। उसके बाद व्रत का पारण करें।