आज मनाया जाना हैं गणगौर पर्व, जानिए इसका महत्व

आज चैत्र शुक्ल तृतीया का पावन पर्व हैं जिसे गौरी तीज या गणगौर के रूप में जाना जाता हैं। ‘गण’ का अर्थ है शिव और ‘गौर’ का अर्थ पार्वती है। इस दिन को सौभाग्य तीज के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन सुहागन महिलाएं अपने सुहाग के प्यार के लिए और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर के लिए यह व्रत रखती हैं। मुख्य तौर पर यह पर्व राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में मनाया जाता हैं। 18 दिन चलने वाले इस त्यौंहार की शुरुआत चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होता है। गणगौर पूजा भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इस दिन को भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम और विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है। अलगाव के कई दिन और महीनों के बाद देवी पार्वती भगवान शिव के साथ फिर से आए थे।

एक बार महादेव पार्वती वन में गए चलते-चलते गहरे वन में पहुंच गए तो पार्वती जी ने कहा-भगवान, मुझे प्यास लगी है। महादेव ने कहा, देवी देखो उस तरफ पक्षी उड़ रहे हैं। वहां जरूर पानी होगा। पार्वती जी वहां गई। वहां एक नदी बह रही थी। पार्वती ने पानी की अंजुली भरी तो दुब का गुच्छा आया, और दूसरी बार अंजुली भरी तो टेसू के फूल, तीसरी बार अंजली भरने पर ढोकला नामक फल आया।

इस बात से पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया। महादेव जी ने बताया कि, आज चैत्र माह की तीज है। सारी महिलाएं अपने सुहाग के लिए गौरी उत्सव करती हैं। गौरी जी को चढ़ाए हुए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे हैं। पार्वती जी ने महादेव जी से विनती की, कि हे स्वामी, दो दिन के लिए आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें, जिससे सारी स्त्रियां यहीं आकर गणगौरी के व्रत उत्सव को करें, और मैं खुद ही उनको सुहाग बढ़ाने वाला आशिर्वाद दूं।

महादेव जी ने अपनी शक्ति से ऐसा ही किया। थोड़ी देर में स्त्रियों का झुंड आया तो पार्वती जी को चिंता हुई, और महादेव जी के पास जाकर कहने लगी। प्रभु, में तो पहले ही वरदान दे चुकी, अब आप दया करके इन स्त्रियों को अपनी तरफ से सौभाग्य का वरदान दें, पार्वती के कहने से महादेव जी ने उन्हें, सौभाग्य का वरदान दिया।

गौरी पूजा और गणगौर त्यौहार के साथ जुड़ी रस्म रंग और खुशी से भरी हैं। गौरी तीज का उत्सव सुबह से ही शुरू होता है जब महिलाएं स्नान करती हैं और गणगौर पूजा करने के लिए पारंपरिक वेशभूषा में तैयार होती हैं। होलिका दहन की राख और गीली मिट्टी मिश्रित करती हैं और फिर गेहूं और जौ बोए जाते हैं और 18 दिनों तक इसे पानी दिया जाता है, जब तक गणगौर महोत्सव की समाप्ति नहीं होती।

महिलाएं इस दिन उपवास करती हैं और अपने पति के लंबे जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। गौरी तृतीया या गणगौर के आखिरी तीन दिनों में, उनके प्रस्थान की तैयारी शुरू हो जाती है। गौरी और ईश्वर जी (जिन्हें स्थानीय भाषा में ईस्सर जी कहते हैं) को उज्ज्वल परंपरागत परिधान पहनाए जाते हैं। फिर शुभ समय का मुहूर्त देखकर विवाहित और अविवाहित महिलाएं मिलकर देवताओं की मूर्तियों को स्थापित करती हैं और एक बगीचे में एक रंगीन और सुंदर जुलूस निकालती हैं। गौरी के अपने पति के घर जाने से संबंधित महिलाएं गणगौर गीत गाती हैं। अंतिम दिन, गौरी और ईश्वर जी की मूर्तियां पानी में प्रवाहित की जाती हैं। यह गणगौर त्योहार के समापन का प्रतीक है।