गणेश चतुर्थी : 'गणपति बप्पा मोरया' जयकारे की कैसे हुई शुरुआत? दिलचस्प है इसके पीछे की कहानी

पूरे देशभर में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) की तैयारियां और जश्न शुरू हो गया है। इस साल गणेशोत्सव 2 सितंबर से 12 सितंबर तक मनाया जाएगा। गणेश पूजन से पहले श्रद्धालु घर में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करते हैं। इस दौरान भक्त बड़े हर्षोल्लास के साथ 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया' का जयकारा लगाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है 'गणपति बप्पा मोरया' जयकारे की शुरुआत कैसे हुई। चलिए आज हम आपको इसके पीछे की कहानी के बारें में बताते है।

पुणे शहर से सटे हुए चिंचवड़ गांव में महान तपस्वी साधु मोरया गोसावी नाम का एक संत हुआ करता था। इलाके के लोग जानते थे के भगवान गणेश के प्रति मोरया गोसावी जी की अपार भक्ति थी। एक बार मोरया गोसावी इन्हें दृष्टान्त हुआ और भगवान गणेश उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए।

भक्त की क्या इच्छा पूरी की जाए ये पूछने पर साधु मोरया गोसावी भगवान गणेश से बोले, 'मैं आपका सच्चा भक्त हूं मुझे धन दौलत, ऐशो-आराम नहीं चाहिए। बस जब तक ये कायनात रहे तब तक मेरा नाम आपसे जुड़ा रहे। यही मेरी ख्वाहिश है।' भगवान ने मोरया गोसावी की इच्छा पूरी करने का वरदान दिया। तभी से जहां भी भगवान गणेश की पूजा की जाती है, वहां भक्त बड़े हर्षोल्लास के साथ 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया' का जयकारा लगाते हैं।

संत मोरया गोसावी का यह किस्सा 14वीं शताब्दी का है। संत मोरया गोसावी की चिंचवड़ गांव में समाधि है। लोगों को विश्वास है के गणपति का सबसे बड़ा भक्त कोई हुआ है तो वो साधु मोरया गोसावी ही हैं। यानी साधु मोरया गोसावी का नाम निरंतर काल से गणेश भगवान से जुड़ा हुआ है। चिंचवड़ के साधु मोरया गोसावी मंदिर से मोरगांव तक कि पालखी यात्रा पिछले 500 साल से भी ज्यादा समय से चलती आ रही है। इस यात्रा की शुरुआत सन 1489 में चिंचवड़ इलाके के महान साधु मोरया गोसावी ने की थी। उनके वंशज आज भी यह परंपरा चला रहा हैं।

पुणे के नजदीक चिंचवड़ से मोरगांव तक का सफर करीब 90 किलोमीटर है, जिसमें तीन दिन तक पैदल चलने के बाद पालकी भक्तों के साथ मोरगांव जा पहुंचती है। चिंचवड़ से मोरया गोसावी मंदिर से साल में दो बार पालखी यात्रा रवाना की जाती है। यानी जनवरी के माघ महीने में पहली बार चिंचवड़ से निकलते हुए पालखी सासवड, जेजुरी, मोरगांव थेऊर से गुजरते हुए आखिर में सिद्धटेक (धार्मिक स्थल) जाकर रुकती है। यह पूरा सफर करीब 140 किलोमीटर का होता है। दूसरी बार गणेशजी के विराजमान होने से पहले यानी भाद्रपद महीने में निकली जाती है। इस पालखी यात्रा को मंगलमूर्ति की मोरगांव यात्रा ऐसा भी कहा जाता है।