क्यों मनाया जाता हैं नवरात्रि का पर्व, जानें श्रीराम से जुड़ी इस कथा के बारे में

हिन्दू धर्म में दो बार नवरात्रि माने जाती हैं एक नवरात्रि चैत्र मास में मनाई जाती हैं और दूसरी नवरात्रि अश्विन मास में। दोनों ही नवरात्रियों का अपना विशेष महत्व होता हैं। आज हम अश्विन मास की नवरात्रि के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी कथा भगवान श्रीराम से जुडी हुई हैं। इस नवरात्रि के बाद 10वें दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता हैं। तो आइये जानते हैं अश्विन नवरात्री से जुडी कथा के बारे में।

इस कथा के अनुसार लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और विधि के अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था भी करा दी। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी पाठ प्रारंभ कर दिया। यह बात पवन के माध्यम से इन्द्रदेव ने श्रीराम तक पहुँचवा दी।

इधर रावण ने मायावी तरीक़े से पूजास्थल पर हवन सामग्री में से एक नीलकमल ग़ायब करा दिया जिससे श्रीराम की पूजा बाधित हो जाए। श्रीराम का संकल्प टूटता नज़र आया। सभी में इस बात का भय व्याप्त हो गया कि कहीं माँ दुर्गा कुपित न हो जाएँ। तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें ।।कमल-नयन नवकंज लोचन।। भी कहा जाता है तो क्यों न एक नेत्र को वह माँ की पूजा में समर्पित कर दें। श्रीराम ने जैसे ही तूणीर से अपने नेत्र को निकालना चाहा तभी माँ दुर्गा प्रकट हुईं और कहा कि वह पूजा से प्रसन्न हुईं और उन्होंने विजयश्री का आशीर्वाद दिया।

दूसरी तरफ़ रावण की पूजा के समय हनुमान जी ब्राह्मण बालक का रूप धरकर वहाँ पहुँच गए और पूजा कर रहे ब्राह्मणों से एक श्लोक जयादेवी..भूर्तिहरिणीठ में हरिणी के स्थान पर करिणी उच्चारित करा दिया। हरिणी का अर्थ होता है भक्त की पीड़ा हरने वाली और करिणी का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली। इससे माँ दुर्गा रावण से नाराज़ हो गईं और रावण को श्राप दे दिया। रावण का सर्वनाश हो गया।