जानें क्यों रखते हैं निर्जला एकादशी का व्रत, क्या है इसका महत्व?

बारह महीनों में 24 और अधिक मास की दो इस तरह कुल 26 एकादशी होती हैं। शास्त्रों में निर्जला एकादशी व्रत का काफी महत्व बताया गया है। निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी का संबंध महाभारत काल के भीम से भी माना गया है। इस बार निर्जला एकादशी व्रत शुक्रवार 10 जून को रखा जाएगा। इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिलता है। शास्त्रों में उल्लेखों के अनुसार मान्यता है कि पांडव पुत्र भीम के लिए कोई भी व्रत करना कठिन था, क्योंकि उनकी उदराग्नि कुछ ज्यादा प्रज्वलित थी और भूखे रहना उनके लिए संभव न था। मन से वे भी एकादशी व्रत करना चाहते थे। इस संबंध में भीम ने वेद व्यास व भीष्म पितामह से मार्गदर्शन लिया। दोनों ने ही भीम को आश्वस्त किया कि यदि वे वर्ष में सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत ही कर लें तो उन्हें सभी 24 एकादशियों (यदि अधिक मास हो तो 26) का फल मिलेगा। इसके पश्चात भीम ने सदैव निर्जला एकादशी का व्रत किया। पद्मपुराण में निर्जला एकादशी व्रत द्वारा मनोरथ सिद्ध होने की बात कही गई है।

उपवास का महत्व

निर्जला का अर्थ ही होता है बगैर जल के। निर्जला एकादशी व्रत पंचतत्व के एक प्रमुख तत्व जल की महत्ता को निर्धारित करता है। इस व्रत में जल कलश का विधिवत पूजन किया जाता है। निर्जला व्रत में व्रती जल के बिना समय बिताता है। जल उपलब्ध होते हुए भी उसे ग्रहण न करने का संकल्प लेने और समयावधि के पश्चात जल ग्रहण करने से जल की उपयोगिता पता चलती है। व्रत करने वाला जल तत्व की महत्ता समझने लगता है। निर्जला एकादशी व्रत पौराणिक युगीन ऋषि-मुनियों द्वारा पंचतत्व के एक प्रमुख तत्व जल की महत्ता को निर्धारित करता है। पंचत्वों की साधना को योग दर्शन में गंभीरता से बताया गया है। अतः साधक जब पांचों तत्वों को अपने अनुकूल कर लेता है तो उसे न तो शारीरिक कष्ट होते हैं और न ही मानसिक पीड़ा।