ज्यादातर हिंदुओं को अपने धर्म, ग्रंथ और पुराण के बारे में नहीं पता होता है। यही वजह है कि हम बहुत सी चीजों से अनजान रहतें हैं। आज हम आपको ऐसी चीज बताएंगे जिस पर आपको यकीन करना मुश्किल है। लेकिन हिंदू धर्म में वर्णित चीजों के मुताबिक ये सत्य है।
यह पढ़ कर शायद यकीन न करें लेकिन ये सच है कि हर स्त्री के चार पति होते हैं और इनमें आप चौथे नंबर पर आते हैं, यह बात आप इसलिए नही जान पाते क्योंकि विवाह के समय जब पंडित आपको विवाह मंत्र पढ़ रहा होता है। तब मंत्र का असली मतलब नहीं समझ पाते हैं।
अगर आप मंत्रो को सही तरीके से जानेंगे, तब आपको पता चल जाएगा कि विवाह के समय मंडप पर बैठे दूल्हे का नम्बर चौथा होता है। उससे पहले उसकी पत्नी का स्वामित्व तीन अन्य लोगों को सौंपा जाता है. सुनने में अजीब लग सकता है परंतु ये सत्य है. दरअसल वैदिक परंपरा में नियम है कि कोई भी स्त्री अपनी ईच्छा से चार पुरुषों को पति बना सकती है।
इस नियम को बनाये रखते हुए स्त्री को पतिव्रत की मर्यादा में रखने के लिए विवाह के समय स्त्री का विवाह तीन देवताओं से करवा दिया जाता है।
सबसे पहले कन्या का स्वामित्व चंद्रमा को सौंपा जाता है. इसके पश्चात् विश्वावसु नामक गंधर्व को, फिर अग्नि को और तत्पश्चात उसके पति को स्वामित्व सौंपा जाता है. इस वैदिक परंपरा के कारण ही द्रौपदी एक से अधिक पतियों के साथ रही।
द्रौपदी ने उस समय की व्यवस्था से आगे बढ़कर पांच पुरुषों को अपना पति स्वीकारा था। अगर द्रौपदी चार पुरुषों की पत्नी होती तो उस समय के नियमानुसार वह न्याय संगत और सामाजिक रूप से स्वीकृत होता और कर्ण उन्हें वेश्या नहीं कह सकता था।
स्त्री के चार पति हो सकते हैं इस व्यवस्था की शुरुआत करने वाले या यूं कहें वैवाहिक व्यवस्था को स्थापित करने वाले उद्दालक ऋषि के पुऋ श्वेतकेतु थे।