Janmashtami Special : गोकुल में कान्हा के जन्म से पहले की जाती है छठी की पूजा, जानें इसका कारण

कृष्ण जन्माष्टमी का त्योंहार पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। लेकिन खासतौर पर गोकुल में इस त्योंहार का अहसास ही परमसुख देता हैं। क्योंकि आज भी गोकुल की गलियां कान्हा के वहां होने का अहसास कराती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गोकुल में गोकुलाष्टमी अर्थात गोकुल में मनाई जानेवाली अष्टमी से पूर्व कृष्ण के छठी की पूजा भी की जाती हैं। ऐसा क्यों होता हैं, आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में।

गोकुल के मंदिरों और नंदजी के घर में कान्हा के जन्मदिन से पहले उनकी छठी की पूजा की जाती है। जी हां, यह जानकर हैरानी होना स्वाभाविक है लेकिन यह सच है कि गोकुल में जन्माष्टमी से पहले कान्हा की छठी (हिंदू धर्म में बच्चे के जन्म के 6ठे दिन की जानेवाली पूजा) पूजी जाती है।

जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले छठी पूजने के पीछे कथा यह है कि जब वासुदेवजी श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर गोकुल में नंदजी के यहां छोड़ आए थे। तब कंस ने राक्षसी पूतना का आदेश दिया कि वह मथुरा और गोकुल और आस-पास में जन्मे उन सभी बच्चों को मार दे, जिनका जन्म बीते 6 दिनों में हुआ है। जब पूतना गोकुल पहुंची और बच्चों को मारना शुरू किया तो माता यशोदा को यह बात पता चल गई। ऐसे में वह श्रीकृष्ण को पूतना से छिपाने और बचाने में व्यस्त हो गईं और घबराहठ में श्रीकृष्ण जी की छठी पूजना भूल गईं।

राक्षसी पूतना छोटे बच्चों को उठाकर ले जाती थी और उन्हें स्तनपान कराकर मार डालती थी। यशोदा मैया की लाख कोशिशों के बावजूद वह कान्हा को उठाकर ले जाने में सफल रही और उन्हें अपना दूध पिलाने लगी। इसी दौरान नन्हे से श्रीकृष्ण ने उसे इतनी जोर से काटा कि उसकी मृत्यु हो गई। आखिर कान्हा साक्षात भगवान विष्णु का अवतार थे, कोई आम बालक नहीं।

पूतना को मारने के बाद बालपन में ही श्रीकृष्ण ने कई राक्षसों और दैत्यों का संहार किया। फिर एक साल बाद जब फिर से कान्हा की जन्मतिथि आई तो यशोदा मैया ने सभी गोकुलवासियों को जन्मदिन में शामिल होने के लिए न्योता भेजा। इस पर गोकुल की बड़ी-बूढ़ी महिलाओं ने यशोदा मैया से कहा कि अभी तक हमने कान्हा की छठी नहीं पूजी है, ऐसे में उनका जन्मदिन कैसे मना सकते हैं।

बुजुर्ग महिलाओं और ब्राह्मणों के कहने पर यशोदा मैया ने कान्हा का जन्मदिन आने से एक दिन पहले उनकी छठी पूजी और फिर उनका जन्मदिन मनाया। बस, तभी से गोकुल में यह प्रथा चली आ रही है कि जन्माष्टमी से एक दिन पहले कान्हा की छठी की पूजा की जाती है।