देव दोष बनाता हैं जीवन को कष्टकारी, जानिए इसके ये 5 कारण

व्यक्ति की कुंडली की स्थिति उसके जीवन को दर्शाती हैं और उसमें उपस्थित दोष व्यक्ति के जीवन में आने वाले बुरे समय का कारण बनते है। कुंडली में कई तरह के दोष पाए जाते हैं जिनका सीधा असर आपके जीवन पर पड़ता हैं। इन्हीं में से एक होता है देव दोष जिसका असर सर्वप्रथम संतान पर पड़ता है। संतान नहीं होती, होती है तो पीड़ा देने वाली निकलती है। हमेशा कुछ न कुछ कष्ट लगा ही रहता है। रोग और शोक चलता ही रहता है। ऐसे में आज हम आपके लिए देव दोष के कारणों की जानकारी देने जा रहे हैं। जिनका पता लगाकर सुधार किया जा सकता हैं। तो आइये जानते हैं इनके बारे में।

- कहते हैं कि किसी जातक ने या उसके परिवार ने या उसके पूर्व सदस्यों ने अपने पुर्वजों, गुरु, पुरोहित, कुलदेवी या देवताओं आदि को मानना छोड़ दिया होगा तो यह दोष प्रारंभ हो जाता है।

- यह भी हो सकता है कि वे ये सभी मानते हों लेकिन उन्होंने या उनके पूर्वजों ने कभी पीपल का वृक्ष काट दिया होगा या किसी देव स्थान को तोड़ दिया होगा तो भी देव दोष प्रारंभ हो जाता है।

- कई बार ऐसा भी होता है कि जातक या उसके परिवार ने किसी संत, साधु या किसी अन्य विचारधारा के प्रभाव में आकर देवी, देवता और कुल धर्म को मानना छोड़ दिया हो या वह नास्तिक बन गया हो।

- माना जाता है कि किसी देवी या देवता से मनौती, मन्नत मांगने पर वह पूरी हो जाती है और उसके एवज में जातक वादा पूरा नहीं करता है तो भी देव दोष उत्पन्न होता है। ऐसा भी हो सकता कि जातक ने पूर्वज ने मन्नत मांगी हो और किए गए वादा को पूरा नहीं किया हो। प्रायः हर व्यक्ति मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किसी तीर्थ अथवा देवस्थान में जाकर मनौती मांगता है कि हमारी अमुक कामना की पूर्ति के उपरांत हम आपको पूजा, भेंट, दर्शनादि करेंगे। ऐसा नहीं करने पर यह दोष उत्पन्न हो जाता है।

- यह भी हो सकता है कि किसी जातके पूर्वजों ने अपना धर्म बदल लिया हो और वह किसी अन्य को मानने लगा हो तो उसके इस कर्म का फल उसकी संतानों को भुगतना होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वधर्म और कुलधर्म के बारे में विस्तार से वर्णित किया है। ज्योतिष के अनुसार इसका संबंध बृहस्पति तथा सूर्य से होता है। बृहस्पति नीच, सूर्य भी नीच या दोनों बुरे ग्रहों के फेर में हो तो भी यह माना जाता है कि जातक के कुल खानदान का धर्म बदला गया होगा।