सर्वपितृ अमावस्या पर इन उपायों से पाए सभी पितरों का आशीर्वाद

श्राद्ध पक्ष जारी हैं और इन दिनों में सभी पितरों और पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता हैं। अगर किसी अन्य दिन श्राद्ध ना कर पाए तो सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध जरूर करना चाहिए जो सभी पितरों को प्रसन्न करता हैं और उनका आशीर्वाद दिलाता हैं। ऐसे में आज हम आपके लिए सर्वपितृ अमावस्या पर किए जाने वाले उपायों की जानकारी लेकर आए हैं जिससे सभी पूर्वजों को प्रसन्न किया जा सकता हैं। तो आइये जानते हैं इन उपायों के बारे में।

- दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त 2, 5, 11 या 16 दीपक जरूर जलाएं।
- पीपल और तुलसी को संध्या काल में जल चढ़ाएं।
- पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें और 'ॐ पितृभ्य: नम:' मंत्र का जाप करें।

- सूर्य को तांबे के बर्तन में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर 'ॐ पितृभ्य: नम:' का बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें।
- किसी भी शिव मंदिर में 5 प्रकार के फल रखकर प्रार्थना करें कि इन 16 दिनों में मेरे पितृ जो आस लेकर आए थे, हो सकता है उसमें कमी रह गई हो पर वे मेरी अनन्य भक्ति को ही पूजा समझ कर ग्रहण करें।
- गाय, कुत्ता, कौआ, पक्षी और चींटी को आहार जरूर प्रदान करें।
- 5 तरह की मिठाई भी शिव मंदिर में अर्पित कर सकते हैं।
- 5 ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।
- चांदी के बर्तन में तर्पण करें।
- सुगंधित धूप दें, जब तक वह जले तब तक ॐ पितृदेवताभ्यो नम: का जप करें और इसी मंत्र से आहुति दें।

श्राद्ध में इन नियमों का भी करें पालन

- पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाएं कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।
- श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लग जाए तब उचित होता है, अर्थात दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। ऐसे में पितर नाराज हो सकते हैं।
- श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए।
- उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है।
- आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।
- श्राद्ध के नाम पर सुबह-सुबह हलवा- पूरी बनाकर मन्दिर में और पंडित को देने से श्राद्ध का फर्ज पूरा नहीं होता है। ऐसे श्राद्धकर्ता को उसके पितृगण कोसते हैं क्योंकि उस थाली को पंडित भी नहीं खाता है बल्कि कूड़ेदान में फेंक देता है। जहां सूअर, आवारा कुत्ते आदि उसे खाते हैं।