प्रदोष व्रत को हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार चंद्र मास के 13 वें दिन अर्थात त्रयोदशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। प्रदोष व्रत अगर सावन महीने का हो तो इसकी महिमा ओर बढ़ जाती हैं। क्योंकि सावन के महीने में शिव की उपासना के लिए रखे गए व्रत का लाभ अधिक होता हैं। आज हम आपको सावन के इस प्रदोष व्रत की महिमा और इस प्रदोष व्रत की विधि के बारे में बताने जा रहे हैं ताकि आप अपने जीवन में पुण्य की प्राप्ति करके मोक्ष प्राप्त करें।
* सावन के प्रदोष व्रत की महिमा शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि 'एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी। व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा। उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी। इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है। उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है। सावन के महीने में इसका लाभ ओर बढ़ जाता हैं।
* प्रदोष व्रत की विधि - प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें।
- इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है।
- पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है।
- पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है।
- अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है।
- प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
- इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
- पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।