अपरा एकादशी : व्रत दिलाता हैं सौभाग्य प्राप्ति के साथ पापों से मुक्ति, जानें कथा और पूजन विधि

आज ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी हैं जिसे अपरा या अचला एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। आज के दिन सभी भक्तगण भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप की पूजा करते हैं। अपरा एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति एवं सौभाग्य की प्राप्ति करवाता हैं। इसी के साथ मृत्यु के बाद भगवान विष्णु का धाम प्राप्त होता है। आज इस कड़ी में हम आपको अपरा एकादशी व्रत की कथा और पूजन विधि से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

अपरा एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

अपरा एकादशी व्रत विधि

एकादशी के व्रत में व्यक्ति को दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। रात को भगवान का ध्यान करके सोना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह उठकर मन से सभी विकारों को निकाल दें और स्नान करके भगवान विष्णु की अगरबत्ती, चावल, चंदन, दीपक, धूप बत्ती, दिए की बत्ती, दूध, हल्दी और कुमकुम से पूजा करें। पूजा में तुलसी पत्ता, श्रीखंड चंदन, गंगाजल एवं मौसमी फलों का प्रसाद अर्पित करें। इसके बाद विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें व कथा पढ़ें। व्रत रखने वाले पूरे दिन परनिंदा, झूठ, छल-कपट से बचें। व्रत ना रखने वाले भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में ना करें तथा झूठ और परनिंदा से बचें।