जिस प्रकार सर्प गोलाकार में कुंडली बांधे रहता है ठीक वैसे ही जन्मपत्रिका भी गोलाकार लपेटी रहती है। इसलिए इसे कुंडली कहते हैं। इसी का दूसरा नाम जन्मपत्री भी है। मुख्य रूप से इसमें 12 स्थान का एक चक्र बना रहता है और उसमें किसी व्यक्ति के जन्म समय की वैसी ही ग्रहस्थिती अंकित रहती है। जैसे उस समय आकाश मंडल में रहती है। यह समझना चाहिए कि व्यक्ति के जन्म समय में आकाश में स्थित जो ग्रह नक्षत्रों स्थिति रहती है। उसी की छाया जन्मपत्रिका है। 12 स्थान जन्मपत्रिका में इसलिए बनाए जाते हैं क्योंकि आकाश गोलाकार है। ये गोलाकार पिंड 364 डिग्री का होता है। 364 डिग्री के 12 भाग 12 राशियों में विभक्त है। क्योकि राशियां 12 है अतः एक राशि 30 डिग्री की होती है। संस्कारित शुद्ध जन्म समय का सूर्योदय से अंतर निकालकर जो घंटा-मिनट समय आता है। उसी का घटी-पलात्मक मान बनाकर जो संख्या प्राप्त होती है। वह इष्टकाल कहलाता है। जैसे किसी का जन्म दिन में 12:00 बजे हुआ और सूर्योदय प्रातः 6:00 बजे है तो सूर्य उदय से जन्म समय 12:00 बजे का अंतर करने पर 6 घंटे प्राप्त हुआ। इसका घटी पल आत्म सम्मान 15 घटी आया यही हाल होता है।
इष्टकाल का ज्ञान होने पर लग्न निकालने की क्रिया प्रारंभ होती है। लग्न साधन की अनेक स्थूल-सूक्ष्म विधियां पंचांग में स्थानीय लग्न सारणी के अंतर्गत वर्णित होती है। जन्म के समय पूर्व से देश में जो राशि जिस अंश पर होती है। उसी से लग्न का निर्धारण होता है। लग्न राशि एवं अंश ज्ञात होने पर 12 स्थान वाली कुंडली-चक्र बनाकर उसमें सबसे ऊपर जो लग्न कहलाता है। उसमें उस राशि का अंक और अंश लिखे जाते हैं। जैसे वृषभ लग्न आया तो वृषभ दूसरी राशि है अतः 2 अंक सबसे ऊपर लिखेंगे। अर्थात व्यक्ति के जन्म के समय पूर्व क्षेत्र में वृषभ राशि उदय हो रही थी।