आजीवन अविवाहित रहीं थी दुनिया की सबसे अमीर यह शहजादी, डिजाइन किया था दिल्ली का चांदनी चौक
By: Ankur Tue, 25 Aug 2020 6:14:27
इतिहास में कई ऐसी शख्सियत हुई हैं जिनके बारे में में बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन उनकी अलग पहचान थी। ऐसी ही एक महिला शख्सियत थी जो मुगल काल से जुड़ी हैं। इनका नाम था जहां आरा जिसे दुनिया की सबसे 'अमीर' शहजादी के रूप में भी जाना जाता हैं। वो मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज महल की बड़ी बेटी थीं। इन्होनें ही दिल्ली का चांदनी चौक डिजाइन किया था। कहा जाता है कि बादशाह शाहजहां ने जहां आरा के लिए छह लाख रुपये वार्षिक का वजीफा तय किया था। वजीफा का मतलब होता है भरण पोषण आदि के लिए मिलनेवाली आर्थिक सहायता। उस समय जहां आरा की उम्र महज 14 साल थी। इस वजीफा के मिलने के बाद वह मुगल दौर ही नहीं बल्कि दुनिया की भी सबसे अमीर शहजादी बन गई थीं।
जहां आरा का जन्म 1614 ईस्वी में हुआ था। 1631 में मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहां ने जहां आरा को पादशाह बेगम बना दिया था और महल के मामलों की अहम जिम्मेदारी सौंप दी थी जबकि उस समय बादशाह की और भी पत्नियां वहीं मौजूद थीं। उस समय जहां आरा की उम्र महज 17 साल थी।
इतिहासकारों के मुताबिक, मुमताज महल की मौत के बाद उनकी सारी संपत्ति का आधा हिस्सा जहां आरा को दिया गया था जबकि बाकी के आधे हिस्से को दूसरे बच्चों में बांट दिया गया था। कहा जाता है कि उनके पास बहुत सी जागीरें थीं और लाखों की संपत्ति। उस समय के एक लाख रुपये भी आज के अरबों-खरबों के बराबर है जबकि जहां आरा को तो हर साल 10 लाख रुपये वजीफे के तौर पर मिलते थे।
दिल्ली के चांदनी चौक बाजार में बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन शायद आप ये नहीं जानते होंगे कि उस चांदनी चौक का डिजाइन जहां आरा ने ही तैयार किया था। सिर्फ यही नहीं, उन्होंने शाहजहांनाबाद में कई इमारतें भी बनवाईं थीं। हालांकि इसको लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद है। जहां आरा ने फारसी में दो किताबें भी लिखी थीं।
जहां आरा के छोटे भाई यानी छठे मुगल बादशाह औरंगजेब ने उत्तराधिकार की लड़ाई में अपने भाई दारा शिकोह का समर्थन करने को लेकर उन्हें और बादशाह शाहजहां को आगरा के किले में कैद कर दिया था। हालांकि शाहजहां की मौत के बाद औरंगजेब और जहां आरा के बीच सामंजस्य बन गया था और औरंगजेब ने उन्हें राजकुमारी की महारानी का खिताब दिया था। जहांआरा आजीवन अविवाहित रहीं और 1681 ईस्वी में 67 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई। उनकी कब्र हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास ही है।
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