छत्तीसगढ़ में हुई 'मुर्गा-मुर्गी' की अनूठी शादी, लगभग पांच हजार लोग हुए शामिल

By: Priyanka Maheshwari Sun, 06 May 2018 2:25:13

छत्तीसगढ़ में हुई 'मुर्गा-मुर्गी' की अनूठी शादी, लगभग पांच हजार लोग हुए शामिल

छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिला इन दिनों एक अनोखी शादी का गवाह बनने जा रहा है। राज्य के दक्षिण हिस्से के इस जिले में कड़कनाथ मुर्गा और मुर्गी की शादी की धूम है। पूरे रश्मो-रिवाज और धूमधाम के साथ इनकी शादी हुई। अब आप भी सोच रहे होंगे कि, भला इस शादी में ऐसा क्या था जो इसकी चर्चा हो रही है। आइये इस अनूठी शादी के बारे में आपको बताते हैं। यह अनूठी शादी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा स्थित हीरानार इलाके में हुई हैं। 'कालिया' और 'सुंदरी' और कोई नहीं, बल्कि एक मुर्गा और मुर्गी हैं। इनकी शादी के लिए ठीक वैसे ही इंतजाम किये गए जैसे आम शादियों में होते हैं। बाकायदा कार्ड आदि छपवाया गया। पहले दिन मण्डपाछादन का कार्यक्रम हुआ और दूसरे दिन तेल और मातृकापूजन हुआ। वहीं शनिवार की शाम कालिया की बारात निकली। बारात में क्षेत्र के आदिवासी किसान, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं और कई गणमान्य लोग शामिल हुए। बारात जब सुंदरी के घर पहुंची तब कालिया और उसके संबंधियों का स्वागत किया गया और धूमधाम से शादी की रस्में पूरी हुईं।

आदिवासी परंपराओं से हुई इस शादी के बाद सुंदरी कालिया की हो गई। रविवार को आशीर्वाद समारोह और प्रीतिभोज का कार्यक्रम है। चार दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में लगभग पांच हजार लोगों के शामिल होने की संभावना है। कालिया कड़कनाथ मुर्गे को पालने वाले लुदरू नाग कहते हैं कि उनके गांव हीरानार को कड़कनाथ हब कहा जाता है। काला मुर्गा या कालामासी नाम से प्रसिद्ध इस मुर्गे को क्षेत्र के आदिवासी वर्षों से पाल रहे थे। लेकिन पिछले कुछ समय से यह विलुप्त हो गया था। क्षेत्र के आदिवासियों की अपनी पंरपरा है और यह प्रकृति पूजक लोग अपने प्रत्येक त्योहार में प्रकृति और जीवों को शामिल करते हैं।

क्षेत्र में जैविक कृषि करने वाले नाग कहते हैं कि यह शादी आदिवासी परंपरा से हो रही है और वह सभी रस्में निभाई जा रही हैं जो आदिवासी परंपरा में होती हैं। इसमें मुर्गे मुर्गी को तेल, हल्दी चढ़ाई गई और उन्हें खाने में तरह तरह के व्यंजन दिए गए। इस शादी का एक कारण यह भी है कि इससे अन्य आदिवासी प्रेरणा लें तथा वह भी कुक्कुट पालन की ओर आगे बढ़ें। वह कहते हैं कि उनके क्षेत्र में अभी लगभग 12 समूह, जिनमें दो सौ महिला और पुरूष किसान शामिल हैं, कड़कनाथ कुक्कुट का पालन कर रहे हैं। वह स्वयं पिछले पांच महीनों के दौरान एक लाख 60 हजार रूपए के कड़कनाथ बेच चुके हैं। इसके साथ ही अन्य किसान भी इस व्यवसाय में आने के बाद अच्छी कमाई कर रहे हैं।

जब उनसे पूछा गया कि शादी के बाद कालिया और सुंदरी का क्या होगा। क्या उन्हें भी बेच दिया जाएगा, नाग कहते हैं कि कालिया और सुंदरी को पाला जाएगा और उन्हें बेचा नहीं जाएगा। वह चाहते हैं कि यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बने रहे। क्षेत्र में कड़कनाथ कुक्कुट पालन व्यवसाय में आदिवासियों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा कृषि विज्ञान केंद्र दंतेवाड़ा के प्रमुख नारायण साहू बताते हैं कि क्षेत्र के लगभग 2200 किसान इस व्यवसाय से जुड़े हैं। वहीं स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी कड़कनाथ कुक्कुट व्यवसाय से जुड़ी हैं। इस व्यवसाय में आने के बाद आदिवासी किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। हीरानार गांव में जहां मुर्गा मुर्गी की शादी हो रही है उसकी पहचान कड़कनाथ हब के रूप में हो रही है।

साहू कहते हैं कि आदिवासी परंपरा में मुर्गी पालन हमेशा से होता रहा है। यहां जब आदिवासियों के घरों में प्रवेश करेंगे तब वहां मुर्गी दड़बा जरूर दिखाई देगा। ऐसी स्थिति में कृषि विज्ञान केंद्र ने तय किया कि मुर्गे के माध्यम से ही आदिवासियों के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है। यदि यह कार्य बेहतर तरीके से संगठन के तौर पर किया जाए तब इसमें सफलता मिल सकती है। वह बताते हैं कि दंतेवाड़ा जिले का मौसम कड़कनाथ मुर्गे के लिए अनुकूल है। वहीं इसके मांस की मांग भी बहुत है। इसलिए इस मुर्गे की फार्मिंग शुरू की गई।

साहू कहते हैं कि इस नस्ल के मांस में औषधीय गुण होता है। जिसमें प्रोटीन की मात्रा 25 फीसदी होती है। ह्रदय रोगी भी इसका मांस खा सकते हैं। इसमें वसा और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी कम पाई जाती है। कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि बस्तर क्षेत्र के आदिवासियों के जीवन में सुधार लाने के लिए कड़कनाथ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ऐसे में स्वाभाविक है कि आदिवासी इसे उत्सव के रूप में मनाने की कोशिश कर रहे हैं और शादी से बेहतर उत्सव क्या हो सकता है।

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