इस तरह से स्थापना हुई थी गोकर्णेश्वर महादेव की

By: Megha Thu, 06 July 2017 1:37:18

इस तरह से स्थापना हुई थी गोकर्णेश्वर महादेव की

टोंक जिले के बनास नदी के तट पर गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर है जो प्राकृतिक वातावरण और पौराणिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भगवान् शिव के सबसे बड़े भक्त रावण (दशानन) ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई वर्षो तक आराधना की थी। शिव की तपस्या से उन्हें ऐश्वर्य की प्राप्ति हुई थी। बीसलपुर बांध के त्रिवेणी संगम पर मौजूद यह मन्दिर लोगो को अपनी ओर आकृर्षित करता है। बीसलपुर बांध होने की वजह से यहाँ पर लोग घूमने भी आते है।

यु तो पुरे संसार मे महादेव के असंख्य ज्योर्तिलिंग है पर प्रमुख रूप से 12 ज्योर्तिलिंग है। इनके अलावा 108 उप ज्योर्तिलिंग है, जिसमे से गोकर्णेश्वर महाबलेश्वर का प्रमुख है। बीसलपुर बांध के पास स्थित गोकर्णेश्वर महादेव का मन्दिर प्राचीन काल से बना है, इसकी कहानी भगवान शिव के महान भक्तों में माने जाने वाले दशानन रावण से जुडी हुई है।

temple in rajasthan,gokarneshwar mahadev mandir in bisalpur

यही पर रावण ने हजारो सालों तक कठिन आराधना की थी,उसकी तपस्या से खुश होके भगवान् शिव ने उन्हें आत्मलिंग के रूप में शिवलिंग दिया और यह भी कहा था की जहा तुम इसे रख दोंगे वही इसकी स्थापना हो जाएगी, शिवलिंग को प्राप्त कर जब वह लंका जाने लगे तो देवताओ ने सोचा की यह अगर लंका मे शिवलिंग की स्थापना हो गयी तो उसे हराना मुश्किल हो जायेगा तो उन्होंने देवीय शक्ति से ऐसी स्थिती उत्पन्न की जिसकी वजह से उसे तीव्र लघुशंका हुई जिस वजह से उसने शिवलिंग को वही रख दिया और जिसकी वजह से वह शिवलिंग वही स्थापित हो गया। यहाँ पर ये शिवलिंग स्वंभू था जो किसी के हाथो स्थापित नहीं किया हुआ था।

यहां पर मौजूद शिवलिंग को गौकर्णेश्वर कहने की कथा भी दिलचस्प है विद्वानों के अनुसार बीसलपुर बांध के स्थित गौकर्णेष्वर महादेव के मंदिर का पौराणिक महत्व है, जिससे के तहत महात्मा गौकर्ण के नाम पर भी इस स्थान का नाम गौकर्णेश्वर महादेव कहा जाता है, बताया जाता है कि महात्मा गौकर्ण ने अपने भ्राता धुन्धकारी को मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां एक सप्ताह की श्रीमद्भागवत का श्रवण करवाया था, इसलिये यह पवित्र स्थान मोक्षदायी भी माना जाता है। वही त्रिवेणी संगत होने के कारण यह स्थान पुजनीय है, क्योंकि पुराणों मे कहा गया है कि जहां तीन नदियों मिलती है वह स्वत: ही तीर्थ बन जाता है।

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