अमिताभ बच्चन विशेष : ‘शोले’ जिसे पहले नकारा, फिर बनी भारतीय सिनेमा की कालजयी फिल्म

By: Geeta Thu, 07 Feb 2019 2:16:10

अमिताभ बच्चन विशेष : ‘शोले’ जिसे पहले नकारा, फिर बनी भारतीय सिनेमा की कालजयी फिल्म

फरवरी 15 को अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) बॉलीवुड (Bollywood) में अपने 50 साल पूरे करने जा रहे हैं (Amitabh Bachchan 50 Years in Bollywood)। इन 50 वर्षों में अभिनेता ने अपने अभिनय का वो रंग सैल्यूलाइड के परदे पर बिखेरा जिसने उन्हें ‘सदी का महानायक’ बनाया। अपने 50 साल के करियर में अनगिनत फिल्मों में नजर आ चुके इस महानायक की ‘शोले (Sholay)’ ऐसी फिल्म है जिसे प्रदर्शन के पहले सप्ताह में असफल घोषित कर दिया गया था, लेकिन बाद में इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कारोबार करते हुए अमिताभ की बेहतरीन फिल्मों में जगह बनाई।

15 अगस्त 1975 को प्रदर्शित हुई इस फिल्म को प्रदर्शन के पहले सप्ताह में बॉक्स ऑफिस पर असफलता का स्वाद चखना पड़ा था। उन दिनों सैल्यूलाइड के परदे पर डकैतों का राज था। प्रदर्शित होने वाली हर दूसरी-तीसरी फिल्म में डकैत नजर आते थे। ऐसे में दर्शकों ने इस फिल्म को सामान्य फिल्म मानते हुए असफल घोषित कर दिया।

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निर्माता जी.पी. सिप्पी ने उस जमाने में इस फिल्म में 3 करोड़ की राशि खर्च की थी। यह बॉलीवुड की उस समय की सबसे महंगी फिल्म थी। इसके प्रचार में भी लिखा गया था—सबसे बड़ी फिल्म, सबसे महंगे सितारे, सबसे महंगी फिल्म। फिल्म की असफलता ने निर्देशक रमेश सिप्पी को चिंतित कर दिया था। हालांकि जिन दर्शकों ने इस फिल्म को पहले सप्ताह में देखा था वो उसकी तारीफ जरूर कर रहे थे। उसी दौरान किसी ने उनसे कहा कि इस फिल्म के संवादों को जारी किया जाए तो यह फिल्म चल सकती है। रमेश सिप्पी ने ऐसा ही किया और ‘शोले’ की तकदीर बदल गई। फिल्म के संवादों का दर्शकों पर ऐसा जादू चला कि सिनेमाघरों में पैर रखने को जगह नहीं मिली। समीक्षकों ने पुन: फिल्म को देखा और उसके बाद इसकी तारीफों के जो पुल बंधे वो आज तक जारी हैं। ‘शोले’ को भारतीय सिनेमा की महान फिल्मों में शामिल किया गया है। ‘शोले’ भारतीय सिनेमा की कालजयी फिल्म है जिसे जब देखो तब नयापन नजर आता है।

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पटकथा लेखक जोड़ी सलीम-जावेद (सलीम खान-जावेद अख्तर) ने 1973 में कई निर्माता निर्देशकों को इस फिल्म की चार लाइन स्निपेट के रूप में बताना शुरू की थी, लेकिन किसी ने भी इस विचार पर फिल्म बनाना मंजूर नहीं किया। इन निर्माता निर्देशकों में मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा भी शामिल थे, जिन्होंने इसे नकार दिया था। 1973 में ‘जंजीर’ के प्रदर्शन के छह माह बाद सलीम-जावेद ने अपनी इस चार लाइन की कहानी को निर्माता जी.पी. सिप्पी और उनके निर्देशक बेटे रमेश सिप्पी को सुनाई। रमेश सिप्पी को शोले की अवधारणा पसन्द आई और उन्होंने इस कहानी को विकसित करने के लिए सलीम-जावेद से कहा।

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फिल्म के मूल विचार में एक सेना अधिकारी शामिल था, जिसने अपने परिवार की हत्या का बदला लेने के लिए दो पूर्व सैनिकों को रखने का फैसला किया था। सेना अधिकारी को बाद में एक पुलिस अधिकारी में बदल दिया गया क्योंकि सेना की गतिविधियों को दर्शाने वाले दृश्यों को शूट करने की अनुमति प्राप्त करना मुश्किल था। सलीम-जावेद ने एक महीने में स्क्रिप्ट पूरी की, जिसमें उनके दोस्तों और परिचितों के नाम और व्यक्तित्व लक्षण शामिल थे। फिल्म की पटकथा और संवाद हिंदी-उर्दू में हैं, मुख्य रूप से उर्दू में। सलीम-जावेद ने उर्दू लिपि में संवाद लिखे, जो तब देवनागरी लिपि में एक सहायक द्वारा प्रसारित किए गए ताकि हिंदी पाठक उर्दू संवाद पढ़ सकें।

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