वरुथिनी एकादशी व्रत दिलाता हैं लोक और परलोक में सुख, जानें इसकी विधि
By: Ankur Mundra Sat, 18 Apr 2020 06:11:58
आज वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी है जिसे वरुथिनी एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। शास्त्रों में एकादशी का बड़ा महत्व बताया गया हैं। आज भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता हैं। यह व्रत शुभ फलदायक माना गया हैं जो मनुष्य को लोक और परलोक में सुखी रखता हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति को हाथी के दान और भूमि के दान करने से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आज हम आपको भक्तों की हर कष्ट और संकट से रक्षा करने वाले वरुथिनी एकादशी व्रत की पूर्ण विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं।
वैशाख मास के कृ्ष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी का व्रत करने के लिये, उपवासक को दशमी तिथि के दिन से ही एकादशी व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। व्रत-पालन में दशमी तिथि की रात्रि में ही सात्विक भोजन करना चाहिए और भोजन में मासं-मूंग दाल और चने, जौ, गेहूं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भोजन में नमक का प्रयोग भी नहीं होना चाहिए। तथा शयन के लिये भी भूमि का प्रयोग ही करना चाहिए। भूमि शयन भी अगर श्री विष्णु की प्रतिमा के निकट हों तो और भी अधिक शुभ रहता है। इस व्रत की अवधि 24 घंटों से भी कुछ अधिक हो सकती है। यह व्रत दशमी तिथि की रात्रि के भोजन करने के बाद शुरु हो जाता है, और इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन प्रात:काल में ब्राह्माणों को दान आदि करने के बाद ही समाप्त होता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत करने के लिए व्यक्ति को प्रात: उठकर, नित्यक्रम क्रियाओं से मुक्त होने के बाद, स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना होता है। स्नान करने के लिये एकादशी व्रत में जिन वस्तुओं का पूजन किया जाता है, उन वस्तुओं से बने लेप से स्नान करना शुभ होता है। इसमें आंवले का लेप, मिट्टी आदि और तिल का प्रयोग किया जा सकता है। प्रात: व्रत का संकल्प लेने के बाद श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिये धान्य का ढेर रखकर उस पर मिट्टी या तांबे का घडा रखा जाता है। घडे पर लाल रंग का वस्त्र बांधकर, उसपर भगवान श्री विष्णु जी की पूजा, धूप, दीप और पुष्प से की जाती है।