शरद पूर्णिमा की रात रावण करता था पुनर्योवन शक्ति प्राप्त, जानें इस दिन का महत्व
By: Ankur Wed, 24 Oct 2018 12:15:21
हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार आज के दिन का विशेष महत्व माना गया हैं, क्योंकि आज चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ उपस्थित होता हैं और अमृतमयी किरणें बिखेरता हैं। इसको पाने के लिए व्यक्ति रात को प्रसाद के रूप में खीर बनाकर चाँद की रौशनी में रखता हैं और उसे ग्रहण कर बिमारियों से मुक्त होता हैं। आज हम आपको शास्त्रों में उल्लेखित शरद पूर्णिमा के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं, तो आइये जानते है इस महत्व के बारे में।
शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है। कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर का प्रसाद भी वितरण किया जाता है।
अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है।
प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। लंकाधिपति रावण भी शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।