गणगौर स्पेशल : क्यों और कैसे की जाती है ईसर-गणगौर की पूजा
By: Ankur Mundra Wed, 25 Mar 2020 4:52:56
हमारे देश को त्यौंहारों के लिए जाना जाता हैं जहां कई पावन पर्व पूरे विधि-विधान के साथ मनाए जाते हैं। आने वाले दिनों में गणगौर का पावन पर्व आने वाला हैं जिसे खासतौर से राजस्थान में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार प्राचीनकाल में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या, व्रत आदि किया था। भगवान शिव माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और माता पार्वती की मनोकामना पूरी की। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए और सुहागने अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए ईशरजी और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं।
होली के दूसरे दिन से महिलाएं और नवविवाहिताएं गणगौर माता की पूजा करनी शुरू कर देती हैं और गणगौर वाले दिन इसका समापन होता है। गणगौर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलने वाला त्योहार है। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं और चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। होली के दूसरे दिन से ही युवतियां 16 दिनों तक सुबह जल्दी उठकर बगीचे में जाती हैं और दूबा, फूल लाती हैं। उस दूबा से दूध के छींटे मिट्टी की बनी गणगौर माता चढ़ाती हैं। थाल में पानी, दही, सुपारी और चांदी का छल्ला अर्पित किया जाता है।
गणगौर वाले दिन महिलाएं सज-धज कर सोलह श्रृंगार करती हैं और माता गौरी की विधि-विधान से पूजा करके उन्हें श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करती हैं। इस दिन मिट्टी से ईशर और गणगौर की मूर्ति बनाई जाती है और इन्हें बड़े ही सुंदर ढंग से सजाया जाता है। गणगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं और गणगौर माता को गुने, चूरमे का भोग लगाया जाता है। शादी के बाद लड़की पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है और गुनों तथा सास के कपड़ो का बायना निकालकर ससुराल में भेजती है।
यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गणगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है। ससुराल में भी वह गणगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण शृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है। दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है, यानि कि विसर्जित किया जाता है। विसर्जन कुए या तालाब में किया जाता है।