Navratri 2020 : वास्तु के इन नियमों का करें देवी माता की पूजा में पालन

By: Ankur Wed, 25 Mar 2020 07:57:14

Navratri 2020 : वास्तु के इन नियमों का करें देवी माता की पूजा में पालन

आज से नवरात्रि के पावन पर्व की शुरुआत होने जा रही हैं और मातारानी के ये नौ दिन सभी भक्तगण आस्था और भक्ति के साथ व्यतीत करते हैं। आज के दिन कलश स्थापना की जाती हैं और मातारानी अपना ममतामयी आशीर्वाद देती हैं। ये नौ दिन श्रद्धा भक्ति के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इस दौरान वास्तु के नियमों का पालन भी जरूरी होता हैं ताकि पूजा के फल में अतिशय वृद्धि होती है। तो आइये जानते हैं वास्तु के इन नियमों के बारे में।

सही दिशा का हो चुनाव

वास्तुविज्ञान के अनुसार मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा का दिशा क्षेत्र ईशान कोण यानि कि उत्तर-पूर्व दिशा को पूजा-पाठ के लिए श्रेष्ठ माना गया है यहाँ पूजा करने से शुभ फलों में वृद्धि होती है और आपको हमेशा ईश्वर का मार्गदर्शन मिलता रहता है। यद्धपि देवी माँ का क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण पूर्व दिशा माना गया है इसलिए यह ध्यान रहे कि पूजा करते वक्त आराधक का मुख दक्षिण या पूर्व में ही रहे। शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाने वाली पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से हमारी प्रज्ञा जागृत होती है एवं दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से आराधक को मानसिक शांति अनुभव होती है।

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ऐसा हो पूजन कक्ष

ध्यान रहे कि पूजन कक्ष साफ़-सुथरा हो,उसकी दीवारें हल्के पीले, गुलाबी ,हरे या वैंगनी जैसे आध्यात्मिक रंग की हो तो अच्छा है,क्यों कि ये रंग आध्यात्मिक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते है। काले,नीले और भूरे जैसे तामसिक रंगों का प्रयोग पूजा कक्ष की दीवारों पर नहीं होना चाहिए।

कलश पूजन की दिशा

धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास होता है। इनके आलावा ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र,सभी नदियों,सागरों,सरोवरों एवं तैतीस कोटि देवी-देवता कलश में विराजमान होते हैं। वास्तु के अनुसार ईशान कोण (उत्तर-पूर्व)जल एवं ईश्वर का स्थान माना गया है और यहां सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा रहती है। इसलिए पूजा करते समय माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में करनी चाहिए। देवी पूजा-अनुष्ठान के दौरान मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पत्तों की बंदनवार लगाने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती।

कहां हो अखंड दीप

नवरात्र के समय देवी माँ की पूजा में शुद्ध देसी घी का अखंड दीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं एवं इससे आस-पास का वातावरण शुद्ध और सुकून भरा हो जाता है। अखंड दीप को पूजा स्थल के आग्नेय यानि दक्षिण-पूर्व में रखना शुभ होता है क्योंकि यह दिशा अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करती है। आग्नेय कोण में अखंड ज्योति या दीपक रखने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है तथा घर में सुख-समृद्धि का निवास होता है। संध्याकाल में पूजन स्थल पर घी का दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है ,घर के सदस्यों को प्रसिद्धि मिलती है व रोग एवं क्लेश दूर होते है।

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