नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक टिप्पणी में कहा कि प्रजनन का अधिकार हर महिला का मौलिक अधिकार है, जिसे किसी तकनीकी या कानूनी पेच के आधार पर छीना नहीं जा सकता। अदालत ने यह बात उस मामले में कही, जिसमें तमिलनाडु सरकार की एक महिला कर्मचारी को दूसरी शादी के बाद मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया गया था।
यह मामला तब सामने आया जब तमिलनाडु सरकार की एक महिला कर्मचारी ने याचिका दायर कर कहा कि उसे तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश नहीं दिया गया, क्योंकि पहली शादी से उसके पहले ही दो संतानें हैं। सरकारी नियमों के अनुसार, मातृत्व लाभ केवल पहले दो बच्चों तक ही सीमित हैं।
हालांकि, महिला ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने पहली शादी के दौरान कभी मातृत्व अवकाश नहीं लिया था, और वह दूसरी शादी के बाद ही सरकारी सेवा में आई थी। ऐसे में उसके साथ किया गया व्यवहार अन्यायपूर्ण और मौलिक अधिकारों का हनन है।
महिला की ओर से पेश वकील केवी मुथुकुमार ने दलील दी कि राज्य सरकार का यह फैसला संविधान के तहत मिले समानता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने पूर्व में कोई लाभ नहीं लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश न सिर्फ एक कर्मचारी का हक है, बल्कि यह महिलाओं के लिए सम्मानजनक और सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने की दिशा में जरूरी कदम है। अदालत ने सरकार को इस निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए भी कहा।