प्राचीन शासकों की वीरता और पराक्रम की गाथाएँ बताते हैं भारत के ये 9 विशाल किले

By: Pinki Tue, 28 Sept 2021 8:04:37

प्राचीन शासकों की वीरता और पराक्रम की गाथाएँ बताते हैं भारत के ये 9 विशाल किले

भारत देश की कल्पना महान किलों के बगैर करना मुश्किल है। कई किले, शानदार और विशाल हैं, एक लंबा इतिहास है, जो भारत में सदियों और दशकों से जीवित है। ये किले न केवल इतिहास को दर्शाते हैं, बल्कि उन समय की स्थापत्य प्रतिभा को भी दर्शाते हैं। ये किलें और महल भारत के इतिहास का एक अभिन्न अंग हैं। इन सभी भव्य संरचनाएं और उनसे जुड़ी कहानियां काफ़ी आकर्षक होती हैं। ये वास्तुशिल्प के चमत्कार हैं जो भारत यात्रा पर निकले पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। इनमें से अधिकांश किले प्राचीन शासकों की वीरता और पराक्रम की गाथाएँ बताते हैं जो इन किलों में रहा करते थें। आज पूरे भारत में हज़ारों किले होंगें लेकिन उनमे से कुछ किले इतने विशाल है जिनका अंदाजा ही नही लगाया जा सकता है। भारत के सबसे बड़े किले विशाल होने के साथ भव्यता और वास्तुकला से भी भरपूर है जो देश विदेश से आने वाले पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण के केंद्र बने हुए है। आज हम अपने इस लेख में आपको भारत के कुछ विशाल किलों के बारे में बताने जा रहे है।

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चित्तौड़गढ़ किला, राजस्थान

चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में 180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और 692 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह एक विश्व विरासत स्थल है। यह दुर्ग विशाल दीवार से घिरा हुआ है जो इस किले के साथ 13 किलोमीटर तक चलती है। चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी थी। इस किले तक पहुंचने के लिए सात अलग-अलग द्वार से गुजर कर जाना होता है जिसमें पेडल पोल, भैरों पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोरला पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल, अंतिम और मुख्य द्वार के नाम शामिल हैं। किले के अन्दर 4 महल परिसर, 19 मुख्य मंदिर, 4 स्मारक और 20 कार्यात्मक जल निकाय स्थित हैं। यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है। इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैं जो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते हैं। चित्तौड़ के दुर्ग को 21जून, 2013 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। चित्तौड़ दुर्ग को राजस्थान का गौरव एवं राजस्थान के सभी दुुर्गों का सिरमौर भी कहते हैं। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश का समय सुबह 9:45 बजे से शाम 6:30 बजे तक है।

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मेहरानगढ़ किला, जोधपुर

मेहरानगढ किला भारत के राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। 1459 में राव जोधा द्वारा निर्मित ये विशाल किला जोधपुर शहर में 410 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह किला लगभग 1200 एकड़ के विशाल एरिया में फैला हुआ है। मेहरानगढ़ किला 68 फीट चौड़ी और 117 फीट लंबी दीवारों द्वारा संरक्षित है जिसके अन्दर कई संरचनायें समाई हुई है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले में सात द्वार हैं जिनमें विक्ट्री गेट, फतेह गेट, भैरों गेट, डेढ़ कामग्रा गेट, फतेह गेट, मार्टी गेट और लोहा गेट के नाम शामिल है। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है। मेहरानगढ में प्रवेश का समय 9।00 बजे से शाम 5:00 बजे तक है।

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ग्वालियर का किला, ग्वालियर

ग्वालियर दुर्ग ग्वालियर शहर का प्रमुखतम स्मारक है और यह एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इस किले को भारत का “जिब्राल्टर” भी कहा जाता है। इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था और तब से कई राजाओं ने मुगलों और ब्रिटिशों के साथ मिलकर इस जगह पर राज किया और उन्होंने यहाँ कई स्थानों का निर्माण भी करवाया। इस किले को लेकर बताया जाता है कि मुगल सम्राट बाबर ने यहाँ के बारे में कहा था कि यह हिंद के किलों के गले में मोती के सामान है। ग्वालियर के किला का ऐतिहासिक महत्त्व काफी ज्यादा है जो इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। वर्ततमान समय में यह दुर्ग एक पुरातात्विक संग्रहालय के रूप में है। इस दुर्ग में स्थित एक छोटे से मन्दिर की दीवार पर शून्य (०) उकेरा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। यह शून्य आज से लगभग 1500 वर्ष पहले उकेरा गया था। लाल बलुए पत्थर से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता है। एक ऊंचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिये दो रास्ते हैं। एक 'ग्वालियर गेट' कहलाता है एवं इस रास्ते सिर्फ पैदल चढा जा सकता है। गाडियां 'ऊरवाई गेट' नामक रास्ते से चढ सकती हैं और यहां एक बेहद ऊंची चढाई वाली पतली सड़क से होकर जाना होता है। इस किले को बड़े ही रक्षात्मक तरीके से बनाया गया है, इस किले के दो मुख्य महल है एक गुजरी महल और दूसरा मान मंदिर हैं। इनके अलावा भी किले के अन्दर पानी के टैंक, कर्ण, जहागीर जैसी कई संरचनायें है जिन्हें पर्यटक देख सकते है। ग्वालियर दुर्ग में प्रवेश सोमवार को छोड़कर प्रतिदिन सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक रहता है।

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लाल किला, दिल्ली

भारत की राजधानी दिल्ली में 254 एकड़ भूमि में फैला हुआ लाल किला भारत का तीसरा सबसे बड़ा किला है। इस किले को "लाल किला", इसकी दीवारों के लाल-लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस किले को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है। भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित लाल किला (Lal Kila) देश की आन-बान शान और देश की आजादी का प्रतीक है। मुगल काल में बना यह ऐतिहासक स्मारक विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल है और भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। लाल किला के सौंदर्य, भव्यता और आर्कषण को देखने दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं और इसकी शाही बनावट और अनूठी वास्तुकला की प्रशंसा करते हैं। भारत के सबसे विशाल किले में से एक लाल किला के अन्दर दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, नहर-ए-बशिष्ठ और मोती मस्जिद जैसे कई आकर्षण शामिल हैं। यह शाही किला मुगल बादशाहों का न सिर्फ राजनीतिक केन्द्र है बल्कि यह औपचारिक केन्द्र भी हुआ करता था, जिस पर करीब 200 सालों तक मुगल वंश के शासकों का राज रहा। देश की जंग-ए-आजादी का गवाह रहा लाल किला मुगलकालीन वास्तुकला, सृजनात्मकता और सौंदर्य का अनुपम और अनूठा उदाहरण है।

लाल किले में उच्चस्तर की कला एवं विभूषक कार्य दृश्य है। यहाँ की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला का संश्लेषण है, जिसका परिणाम विशिष्ट एवं अनुपम शाहजहानी शैली था। यह शैली रंग, अभिव्यंजना एवं रूप में उत्कृष्ट है। लालकिला दिल्ली की एक महत्वपूर्ण इमारत समूह है, जो भारतीय इतिहास एवं उसकी कलाओं को अपने में समेटे हुए हैं। लाल किले में प्रवेश सोमवार को छोड़कर प्रतिदिन सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक रहता है।

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गोलकोंडा किला, हैदराबाद

हैदराबाद शहर में हुसैन सागर झील से लगभग 9 किमी की दूरी पर स्थित गोलकोंडा का किला भारत के विशाल किले में से एक है। इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14वीं शताब्दी में कराया था। बाद में यह बहमनी राजाओं के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा। 1512 ई. में यह कुतबशाही राजाओं के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा। फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया। यह ग्रैनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमें कुल आठ दरवाजे हैं और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है। गोलकोंडा किला अपनी वास्तुकला, पौराणिक कथाओं, इतिहास और रहस्यों के लिए जाना जाता है। गोलकोंडा किले में प्रवेश सुबह 9:45 बजे से शाम 6:30 बजे तक रहता है।

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कांगड़ा किला, हिमाचल प्रदेश

कांगड़ा दुर्ग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा कस्बे के बाहरी सेमा में फैला हुआ एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग का उल्लेख सिकन्दर महान के युद्ध सम्बन्धी रिकार्डों में प्राप्त होता है जिससे इसके इसापूर्व चौथी शताब्दी में विद्यमान होना सिद्ध होता है। कांगड़ा, धर्मशाला से 20 किमी दूर है। यह किला लगभग 3500 साल पुराना है, जो हमारे देश में सबसे पुराना है। कांगड़ा किला लगभग 463 एकड़ भूमि में फैला हुआ है जो स्थापत्य सौंदर्य का प्रतीक है। इस किले के अन्दर 21 कुएं हैं। हालाँकि अब यह विशाल किला ज्यादातर खंडहर हो चुका है लेकिन एक बार वहाँ खड़े होने वाले शाही ढांचे की परिकल्पना आसानी से की जा सकती है। इस किले में प्रवेश का समय सुबह 7:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक है।

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जैसलमेर का किला, जैसलमेर

जैसलमेर भारत के राजस्थान प्रांत का एक शहर है। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है। सल्तनत काल के लगभग 300 वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग 300 वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। जैसलमेर का किला भारत के प्रमुख किलो में से एक है जिसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में भी शामिल किया गया है। राजस्थान राज्य के जैसलमेर में तिरुकुटा पहाड़ी पर स्थित जैसलमेर का किला दुनिया के सबसे बड़े और जीवित किलो में से एक है जो अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए जीता है। इस किले का निर्माण 1156 ई0 में एक भाटी राजपूत शासक जैसल द्वारा त्रिकुरा पहाड़ी के शीर्ष पर निर्मित किया गया था। जैसलमेर किले में कई खूबसूरत हवेलियाँ या मकान, मंदिर और सैनिकों तथा व्यापारियों के आवासीय परिसर हैं। यह किला एक 30 फुट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है। यह एक विशाल 99 बुर्जों वाला किला है।राजस्थान के अन्य किलों की तरह, इस किले में भी अखाई पोल, हवा पोल, सूरज पोल और गणेश पोल जैसे कई द्वार हैं। सभी द्वारों में अखाई पोल या प्रथम द्वार अपनी शानदार स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है। इस प्रवेश द्वार को वर्ष 1156 में बनाया गया था और शाही परिवारों और विशेष आगंतुकों द्वारा यही प्रवेश द्वार उपयोग किया जाता था। इस किले में प्रवेश सुबह 7:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक है।

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जयगढ़ का किला, जयपुर

भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में अरावली पर्वतमाला में चील का टीला (ईगल की पहाड़ी) पर आमेर दुर्ग एवं मावता झील के ऊपरी ओर बना किला है जयगढ़ का किला। यह किला जयपुर में समुद्र तल से 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह किला चट्टान के शीर्ष पर बँधा हुआ हरे भरे और विशाल जंगों से घिरी एक महलनुमा संरचना है। इस किले की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इस किले में दुनिया की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है। जयगढ़ किला विद्याधर नामक एक प्रतिभाशाली वास्तुकार द्वारा निर्मित और डिजाइन किया गया जिसकी वजह से यह किला यहाँ आने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ बेहद आकर्षित करता है। जयगढ़ दुर्ग को जीत का किला भी कहा जाता है।

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सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र

यह किला मुंबई से 400 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र के बीच में बनाया गया था। किले का निर्माण शिवाजी ने 1664 से 1667 के बीच किया था। सिंधुदुर्ग अपनी खूबसूरती की वजह से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है। सिंधुदुर्ग समुद्र के बीच एक छोटे टापू पर बना है।

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