इस दुनिया में कई किस्से ऐसे हो जाते हैं जो सोच से परे होते हैं और अचरज में डालने वाले होते हैं। ऐसा ही कुछ चमत्कारिक किस्सा एडगर कायसे के साथ हुआ था जिसे दिव्यशक्ति पुरुष के तौर पर जाना जाता था और वह वैज्ञानिकों के लिए एक अनसुलझा राज बना था। दरअसल, एडगर ने कोमा में रहते हुए डॉक्टर को खुद का इलाज बताया था। हैरानी की बात तो ये थी कि जब वो बोल रहे थे, तब भी वह कोमा में ही थे जबकि कोमा में रहने वाला व्यक्ति न तो हिल-डुल पाता है और न ही बोल पाता है। वह एक 'जिंदा लाश' की तरह होता है।
18 मार्च 1877 को अमेरिका के केंटुकी में जन्मे एडगर जब 25 साल के थे, तब उनके साथ एक बेहद ही अजीबोगरीब और आश्चर्य कर देने वाली घटना घटी थी। वह गिरने की वजह से कोमा में चले गए थे। डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद भी वह होश में नहीं आ सके, लेकिन एक दिन अचानक एक चमत्कार हुआ और वो बोल पड़े।
एडगर ने कोमा में रहते हुए ही डॉक्टरों को बताया कि वह एक पेड़ से नीचे गिर गए थे, जिसके बाद उनकी हड्डियों और उनके दिमाग में गहरी चोट लगी है। उन्होंने कहा कि अगर दो दिन में उनका इलाज नहीं हुआ तो वह मर जाएंगे। उन्होंने डॉक्टरों को कुछ जड़ी-बूटियां बताईं और कहा कि अगर वह इन्हें लेकर आएंगे और दो दिन के अंदर इंजेक्शन के जरिए उनके खून में ये पहुंचा देंगे तो उनकी जान बच जाएगी और वो ठीक हो जाएंगे। इतना कहने के बाद वह फिर से उसी अवस्था में चले गए, जैसा कोमा के दौरान कोई व्यक्ति रहता है।
एडगर का कोमा के दौरान कुछ कह पाना पहले से ही डॉक्टरों को एक चमत्कार लग रहा था, ऐसे में उनके लिए यह और भी आश्चर्यचकित कर देने वाली बात ये थी कि एडगर न तो खुद डॉक्टर थे और न ही उन्हें विज्ञान जगत के बारे में या जड़ी-बूटियों के बारे में पहले से जानकारी थी। फिर भी डॉक्टरों ने मुर्छावस्था में कही गई उनकी बात मान ली और जड़ी-बूटियां खोजकर लाए और इंजेक्शन के जरिए वो उनके खून में पहुंचा दिया। इसके बाद वही हुआ, जैसा एडगर ने कहा था। वह कुछ ही घंटों के बाद होश में आ गए।
इस रहस्यमय घटना ने एडगर के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। कहते हैं कि वह जब भी अपनी आंखें बंद करते थे और किसी रोग के इलाज के बारे में सोचते थे तो उन्हें उसका इलाज मिल जाता था। कहा जाता है कि उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में करीब 30 हजार लोगों को मौत से बचाया था। विज्ञान जगत में उनका नाम 'चमत्कारिक पुरुष' के रूप में दर्ज है। उनके ऊपर कई किताबें भी लिखी हुई हैं। तीन जनवरी, 1945 को 67 साल की उम्र में अमेरिका के वर्जीनिया में उनकी मौत हो गई थी।