कौन है दारा शिकोह, ताजमहल के प्रांगण में गडा है जिसका सिर

भारतीय इतिहास में मुगलों का जिक्र जरूर होता हैं जिसमें ताजमहल बनवाने वाले शाहजहाँ और अपने अत्याचारों के लिए प्रसिद्द औरंगजेब भी हैं। लेकिन इतिहास के इन पन्नों के कई पन्ने ऐसे हैं जिनसे लोग अभी तक अनजान हैं। ऐसा ही एक पन्ना हैं दारा शिकोह नामक व्यक्ति का। यह नाम शायद आपने पहली बार सुना होगा, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दारा शिकोह शाहजहां के बड़े बेटे और औरंगजेब के बड़े भाई थे। शाहजहां अगर अपने बेटों में सबसे ज्यादा किसी को मानते थे तो वो दारा शिकोह ही थे, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उनका सिर काटकर सीधे उनके पिता शाहजहां के सामने पेश किया गया और कटवाया भी किसने, तो उनके छोटे भाई औरंगजेब ने। तो चलिए इसके पीछे का इतिहास जान लेते हैं।

दारा शिकोह को वर्ष 1633 में शहजादा (युवराज) बनाया गया था, यानी शाहजहां के बाद दारा ही मुगल सल्तनत के अगले बादशाह होते। खुद शाहजहां ने भी इसकी घोषणा कर दी थी, लेकिन दारा के बाकी भाईयों यानी शाहजहां के दूसरे बेटों को ये स्वीकार नहीं था। इस बीच शाहजहां जैसे ही बीमार पड़े, उनके बेटों में सत्ता को लेकर संघर्ष शुरू हो गया।

उत्तराधिकार की लड़ाई में औरंगजेब ने अपने ही बड़े भाई दारा शिकोह की हत्या करवा दी और शाहजहां को तो उसने पहले ही आगरा में बंदी बनाकर रखा हुआ था। अवीक चंदा की किताब 'दारा शिकोह, द मैन हू वुड बी किंग' के मुताबिक, औरंगजेब ने दारा शिकोह के कटे हुए सिर को शाहजहां के पास तोहफे के तौर पर भिजवाया और उनके धड़ को दिल्ली में ही हुमायूं के मकबरे में दफना दिया गया।

हालांकि हुमायूं के मकबरे के परिसर में दारा शिकोह का धड़ कहां दफनाया गया था, ये किसी को नहीं पता, क्योंकि वहां मुगल वंश की लगभग 140 कब्रें हैं। हालांकि संस्कृति मंत्रालय ने दारा की कब्र का पता लगाने के लिए भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की सात सदस्यीय टीम का गठन किया है।

इटैलियन इतिहासकार निकोलाओ मनूची ने अपनी किताब 'स्टोरिया दो मोगोर' में लिखा है कि औरंगजेब के आदेश पर दारा के सिर को ताजमहल के प्रांगण में गाड़ दिया गया, क्योंकि उसका मानना था कि शाहजहां जब भी अपनी बेगम के मकबरे को देखेंगे तो उन्हें बार-बार ये ख्याल आएगा कि उनके सबसे प्रिय और बड़े बेटे दारा का सिर वहां सड़ रहा है।

आपको शायद पता न हो, लेकिन मुगल इतिहास की सबसे महंगी शादी नादिरा बानो से दारा शिकोह की शादी को ही माना जाता है। कहते हैं कि उस जमाने में उस शादी में करीब 32 लाख रुपये खर्च हुए थे। अवीक चंदा की किताब के मुताबिक, कहा जाता है कि शादी के दिन पहने गए दुल्हन के जोड़े की ही कीमत करीब आठ लाख रुपये थी।