जब दाढ़ी रखने और आत्मा पर भी लगता था टैक्स, जाने कुछ और अनोखे टैक्स के बारे में

केन्द्रीय वित्त मंत्री की ओर से पेश की जाने वाली वार्षिक वित्त रिपोर्ट को ही ‘आम बजट’ कहा जाता है। इसमें अकाउंट्स स्टेटमेंट, अनुमानित प्राप्तियां,1 अप्रैल से शुरू होने वाले आगामी वित्त वर्ष के लिए अनुमानित खर्च का विस्तृत ब्योरा होता है। इसमें शामिल सरकारी योजनाओं पर खर्च की स्वीकृति संसद पर निर्भर करती है। बजट के माध्यम से वित्त मंत्री संसद से टैक्स, ड्यूटीज और ऋण के माध्यम से धन जुटाने की मंजूरी चाहता है। आम बजट से आम जनता पर टैक्स लगता है तो सरकार की जेब में पैसा आता है और उससे देश चलता है। देश चलाने के लिए पैसा जुटाने की यह परंपरा बहुत पुरानी है। अगर इतिहास पर नजर डालें तो सरकारी खजाने को भरने के लिए कई देश अनोखे टैक्स लगाते रहे हैं। आइए जानते हैं दुनिया भर के अनोखे टैक्स के बारे में...

दाढ़ी पर टैक्स: 1535 में इंग्लैंड के सम्राट हेनरी अष्टम ने दाढ़ी पर टैक्स लगा दिया था। उनकी भी दाढ़ी थी। हालांकि यह पता नहीं चलता कि वे दाढ़ी टैक्स देते थे या नहीं। वैसे यह टैक्स आदमी की सामाजिक हैसियत के हिसाब से लिया जाता था। हेनरी अष्टम के बाद उनकी बेटी एलिजाबेथ प्रथम ने नियम बनाया कि दो हफ्ते से ज्यादा बड़ी दाढ़ी पर टैक्स लिया जाएगा। टैक्स वसूली का वक्त हो और कोई घर से गायब मिले तो उसका टैक्स पड़ोसी को देना होता था। यानी आम लोगों के लिए एक काम यह भी बढ़ गया था कि टैक्स वसूली के वक्त वे अपने पड़ोसियों पर नजर रखें।

1698 में रूस के शासक पीटर द ग्रेट ने भी दाढ़ी पर टैक्स लगाया था। पीटर की इच्छा थी कि रूस का समाज भी यूरोपीय देशों के समाज की तरह आधुनिक हो और लोग नियम से दाढ़ी मुंडवाते रहें। तब रूस में दाढ़ी टैक्स चुकाने वालों को एक टोकन मिलता था, जिसे उन्हें हर समय साथ लेकर चलना पड़ता था। टोकन तांबे या चांदी का होता था और उस पर लिखा होता था कि उस शख्स ने दाढ़ी कर चुका दिया है। कहने की जरूरत नहीं कि कोई दाढ़ी वाला शख्स अगर बिना टोकन मिला तो उसकी शामत आ जाती थी।

आत्मा पर टैक्स

इन्हीं पीटर द ग्रेट ने 1718 में सोल यानी आत्मा पर भी टैक्स लगाया। यह उन लोगों को देना होता था जो यह यकीन करते थे कि उनके पास आत्मा जैसी कोई चीज है। बच वे भी नहीं सकते थे जो यह यकीन नहीं करते थे। कहते हैं कि उनसे धर्म में आस्था न रखने का टैक्स लिया जाता था। चर्च और पहुंच वाले वर्ग से ताल्लुक रखने वालों को छोड़कर यह सबको देना होता था। टैक्स वसूली का वक्त हो और कोई घर से गायब मिले तो उसका टैक्स पड़ोसी को देना होता था। यानी आम लोगों के लिए एक काम यह भी बढ़ गया था कि टैक्स वसूली के वक्त वे अपने पड़ोसियों पर नजर रखें। पीटर द ग्रेट ने यह टैक्स इसलिए लगाया था कि इससे रूस की सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए जरूरी भारी रकम जुटाई जा सके। वे इन दोनों कामों में सफल रहे।

खिड़की टैक्स:

1696 में इंग्लैंड और वेल्स के राजा विलियम तृतीय ने खिड़कियों पर टैक्स लगा दिया। क्यों लगाया, इसकी भी कहानी दिलचस्प है। उस समय राजा के खजाने की हालत खस्ता थी। इसकी हालत सुधारने के लिए पहले इन्कम टैक्स का रास्ता था, लेकिन उन दिनों वहां पर इसका भारी विरोध हो रहा था। इन्कम टैक्स चुकाने के लिए अपनी कमाई सार्वजनिक करना जरूरी था। लोगों का मानना था कि यह उनके मामलों में सरकार का दखल है। वे इसे व्यक्तिगत आजादी पर खतरा करार दे रहे थे।

कुंवारों की शामत:

नौवीं सदी में रोम के सम्राट ऑगस्टस ने बैचलर टैक्स लगाया था। इसका मकसद शादी को बढ़ावा देना था। ऑगस्टस ने उन शादीशुदा जोड़ों पर भी टैक्स लगाया जिनके बच्चे नहीं थे। यह 20 से 60 साल की उम्र तक के लोगों पर लागू होता था। बैचलर टैक्स 15वीं सदी के दौरान ऑटोमन साम्राज्य में भी प्रचलित था। इटली के तानाशाह मुसोलिनी ने भी 1924 में 21 से लेकर 50 वर्ष की आयु के बीच के अविवाहित पुरुषों पर बैचलर टैक्स लगाया। यानी कुंवारों की शामत आती रही है।

गाय के पेट में गैस ज्यादा होने पर टैक्स

डेनमार्क और कुछ यूरोपियन नेशन गायों के पादने पर टैक्स लगाते हैं। दरअसल ग्लोबल वॉर्मिंग का मुकाबला करने के लिए यह टैक्स लगाया जाता है। कुथ अध्ययन के मुताबिक यूरोप के कुल ग्रीनहाउस में गाय के हवा छोड़ने का 18 फीसदी योगदान होता है। आयरलैंड में यह टैक्स जहां हर गाय पर 18 डॉलर का टैक्स लगता है वहीं डेनिश किसानों को हर गाय पर 110 डॉलर का टैक्स देना पड़ता है।

ब्रेस्ट टैक्स

त्रावणकोर राज्य में समाज के वंचित वर्गों की महिलाओं पर ब्रेस्ट टैक्स वसूला जाता था। 'नीची जाति' की महिलाओं को स्तन ढकने की आजादी नहीं थी। स्तन ढाकने के लिए उन्हें टैक्स देना पड़ता था। टैक्स कलेक्टर्स ब्रेस्ट माप कर उसी के अनुसार टैक्स वसूलते थे, जिससे परेशान होकर एक बहादुर युवती ने अपना स्तन काटकर टैक्स कलेक्टर के हाथ में ही दे दिया था।


आज भी ऐसे विचित्र टैक्स जारी हैं। डेनमार्क और हंगरी जैसे देशों ने चीज, बटर और पेस्ट्री जैसी खाद्य सामग्री पर फैट टैक्स लगाया हुआ है। इस टैक्स के दायरे में वे सभी चीजें आती हैं, जिनमें 2.3 परसेंट से ज्यादा सेचुरेटेड फैट है। इस टैक्स का मकसद लोगों को मोटापे और उसके चलते होने वाली बीमारियों से बचाना है। ज्यादा टैक्स की वजह से चीजें महंगी होंगी, तो लोग कम खाएंगे और उनकी सेहत ठीक रहेगी।