गिरिराज महाराज की कृपा और भक्तिमयी छाया में शुक्रवार की सुबह और भी पावन बन गई, जब संत प्रेमानंदजी ने ब्रजरज को मस्तक पर धारण कर अपनी परिक्रमा का दिव्य क्रम पुनः प्रारंभ किया। बुधवार को जहां उन्होंने विराम लिया था, वहीं से भक्ति और विनम्रता के साथ उन्होंने कदम आगे बढ़ाए।
राधे-राधे के जयघोष से जीवंत हुआ परिक्रमा मार्गसुबह साढ़े नौ बजे संत प्रेमानंदजी का काफिला पूंछरी पहुंचा। वहां से उन्होंने पैदल परिक्रमा शुरू की, और मानो पूरा मार्ग भक्तिमय ऊर्जा से सराबोर हो गया। राधे-राधे के जयघोष हवा में घुलकर ऐसा आह्वान कर रहे थे, मानो गिरिराज स्वयं भक्तों को इस अद्भुत दृश्य का साक्षी बनने बुला रहे हों। संतजी के आगमन की खबर जैसे ही फैली, परिक्रमा मार्ग श्रद्धालुओं से भर गया। चारों ओर पुष्पों की वर्षा, भक्ति के मधुर स्वर और नयनाभिराम दृश्य मानो भक्ति का सागर पैदा कर रहे थे।
जतीपुरा में गिरिराजजी की पूजा अर्चनासंत प्रेमानंदजी के दिव्य चरण जहां पड़े, वहां भजन-कीर्तन की मधुर ध्वनियां गूंज उठीं। भक्त उनके दर्शन के लिए आगे बढ़ते रहे। जतीपुरा पहुंचकर संतजी ने गिरिराजजी की पूजा अर्चना की, दूध से अभिषेक किया और भक्तिभाव से नतमस्तक हुए। उस क्षण परिक्रमा मार्ग का हर कण राधे-राधे के जयकारों से झूम उठा।
जतीपुरा से बाहर निकलकर उन्होंने थोड़े विश्राम के लिए परिक्रमा को विराम दिया और करीब डेढ़ घंटे बाद गाड़ी से वृंदावन की ओर प्रस्थान किया। इसके बावजूद उन्होंने पीछे भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिक ऊर्जा की अमिट लहर छोड़ दी।
भक्ति और उमंग से सराबोर श्रद्धालुतलहटी में गूंजते जयकारे और भक्तों की उमंग यह दर्शा रही थी कि केवल प्रेमानंदजी के दर्शन ने ही उस दिन को तीर्थ और हर क्षण को उत्सव में बदल दिया। भक्तों की श्रद्धा और आनंद का यह दृश्य इस दिव्य यात्रा की महत्ता को और बढ़ा रहा था।