
जयपुर। राजस्थान विश्वविद्यालय से संबद्ध लॉ कॉलेज में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां नाबालिग से गैंगरेप के आरोप में एक साल से जेल में बंद दो छात्रों की कॉलेज में नियमित उपस्थिति दर्ज की जाती रही। पॉक्सो मामलों की विशेष अदालत ने इस गंभीर लापरवाही पर सख्त नाराजगी जताते हुए दोनों आरोपियों को परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी। साथ ही अदालत ने मामले की जांच और कार्रवाई के लिए आदेश की प्रति विश्वविद्यालय प्रशासन और बार काउंसिल ऑफ राजस्थान को भेजी है।
फर्जी उपस्थिति पर अदालत ने उठाए गंभीर सवालमहानगर प्रथम की पॉक्सो अदालत क्रम-2 के पीठासीन अधिकारी तिरुपति कुमार गुप्ता ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट कहा कि यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही है बल्कि न्यायिक व्यवस्था के साथ खिलवाड़ है। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि यदि अदालत ऐसे आरोपियों को परीक्षा में बैठने की अनुमति देती है, तो यह अवैध कार्यों पर न्यायिक मुहर लगाने जैसा होगा। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि शिक्षकों ने जानबूझकर या किसी दबाव में आकर आरोपियों की फर्जी हाजिरी रिपोर्ट भेजी है।
पिछली परीक्षा में भी हो चुकी है गड़बड़ीअदालत ने यह तथ्य भी उजागर किया कि पिछले वर्ष जब दोनों आरोपी फरार थे, तब भी वे एलएलबी प्रथम वर्ष की परीक्षा में शामिल हुए थे। इससे यह आशंका और गहरा गई कि उस समय की उपस्थिति रिपोर्ट भी फर्जी ही रही होगी। कोर्ट ने सवाल किया कि जब दोनों छात्र अगस्त 2024 से न्यायिक हिरासत में हैं, तब उनकी कक्षा में हाजिरी कैसे लगाई गई। इस पर कॉलेज के प्राचार्य संदीप सिंह अदालत में उपस्थित हुए और माना कि बिना उपस्थिति के परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
नाबालिग से गैंगरेप के गंभीर आरोप, घोषित हो चुका था इनामगौरतलब है कि दोनों आरोपी – रामवीर और धर्मपाल – पर वर्ष 2022 में नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म का संगीन मामला दर्ज हुआ था। वे लंबे समय तक फरार रहे, जिस पर अगस्त 2023 में उन पर दो-दो हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया। जुलाई 2024 में यह इनाम बढ़ाकर दस हजार रुपये कर दिया गया। अंततः 29 अगस्त 2024 को दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जहां वे अब तक न्यायिक हिरासत में हैं।
विश्वविद्यालय और बार काउंसिल को भेजा गया आदेशअदालत ने मामले को गंभीरता से लेते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति और बार काउंसिल ऑफ राजस्थान को आदेश की प्रतियां भेजकर आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा है। इस घटनाक्रम से विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली और उपस्थिति प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
इस मामले ने उच्च शिक्षा संस्थानों में जवाबदेही, पारदर्शिता और नैतिक जिम्मेदारी की भारी कमी को उजागर कर दिया है। जब आरोपी जेल में बंद हैं और अदालत में गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं, तब उनकी उपस्थिति दर्ज करना न केवल प्रशासनिक चूक है बल्कि न्याय व्यवस्था के लिए भी चुनौती है। अदालत की सख्ती यह दर्शाती है कि ऐसे मामलों में कोई भी ढिलाई स्वीकार नहीं की जाएगी, चाहे वह किसी भी स्तर पर हो।