राजस्थान में ASI को महाभारत काल के मिले प्रमाण, डीग की खुदाई में मिलीं 5000 साल पुरानी बस्तियां और प्राचीन मूर्तियां

राजस्थान की ऐतिहासिक धरती पर एक बार फिर इतिहास जाग उठा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम ने ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पर्वत के समीप स्थित डीग इलाके में की जा रही खुदाई के दौरान ऐसे चौंकाने वाले प्रमाण खोज निकाले हैं, जिनसे भारत के प्राचीन गौरव और सभ्यता की गहराइयों का पता चलता है। बीते दो वर्षों से चल रही इस खुदाई ने न केवल अनुमानित सरस्वती नदी के सूखे अवशेषों को उजागर किया है, बल्कि ऐसी खोजें सामने आई हैं जो यह संकेत देती हैं कि महाभारत सिर्फ एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सच्चाई है।
5 हजार साल पुरानी बस्तियां और बर्तन: सीधा जुड़ाव महाभारत काल से

ASI के जयपुर सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद विनय गुप्ता की अगुवाई में डीग के बहज इलाके में टीलों पर की गई खुदाई के दौरान Painted Grey Ware (PGW) और Ochre Coloured Pottery (OCP) जैसे प्राचीन बर्तन प्राप्त हुए हैं। खास बात यह है कि OCP शैली के बर्तनों को 5,000 साल या उससे भी अधिक पुराना माना जा रहा है, और यह वही काल है जिसे हिंदू परंपराओं में महाभारत युग से जोड़ा जाता है।

इतना ही नहीं, ASI की पूर्व खुदाइयों में भी यह सिद्ध हुआ है कि OCP बर्तनों का सीधा संबंध महाभारत काल से है। इस बार भी ये बर्तन लगभग 20 मीटर गहराई में मिले हैं, जिससे यह संभावना और मजबूत हो जाती है कि यह बहुत प्राचीन सभ्यता का हिस्सा रहे होंगे।

शिव-पार्वती की 3,000 साल पुरानी मूर्ति: मूर्ति पूजा के सबसे पुराने प्रमाणों में से एक

अब तक के शैक्षणिक ग्रंथों में महाभारत काल को करीब 3,000 साल पुराना माना जाता था, लेकिन डीग की इस खुदाई ने यह समयरेखा और पीछे खिसका दी है। खुदाई में भगवान शिव और देवी पार्वती की लगभग 3,000 साल पुरानी मूर्ति मिली है, जो यह दर्शाती है कि मूर्ति पूजा की परंपरा भारत में अत्यंत प्राचीन है।

डॉ. विनय गुप्ता के अनुसार, यह माना जाता था कि प्राचीन काल में शिव की पूजा केवल शिवलिंग रूप में होती थी, लेकिन इस खोज से यह साबित होता है कि मानव रूप में शिव-पार्वती की मूर्ति भी पूजी जाती थी।

अश्विनी कुमारों की दुर्लभ मूर्ति: 2 हजार साल पुराना चमत्कार

इतना ही नहीं, खुदाई के दौरान अश्विनी कुमारों की लगभग 2,000 साल पुरानी मूर्ति भी प्राप्त हुई है। हिंदू धर्म के अनुसार, अश्विनी कुमार 33 प्रमुख देवताओं में शामिल हैं। साथ ही, खुदाई में एक ऐसी मूर्ति भी मिली है जो विरूपाक्ष शिव की आकृति से मिलती है और मूंछों वाली है, जो कि अपने आप में एक अनूठा और ऐतिहासिक प्रमाण मानी जा रही है।

पहले यह माना जाता था कि विरूपाक्ष शिव की पूजा गुप्त काल (करीब 1,500 साल पहले) में शुरू हुई थी, लेकिन यह खोज बताती है कि यह परंपरा 2 से 3 हजार साल पुरानी हो सकती है।

प्राचीन लोहा और शिल्पकला के प्रमाण

खुदाई में OCP शैली के बर्तनों के साथ-साथ प्राचीन लोहे की धातु भी मिली है, जिसे लेकर विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह धातु भी करीब 5,000 साल पुरानी हो सकती है, यानी 3,000 ईसा पूर्व की। हालांकि इसकी पुष्टि के लिए वैज्ञानिक परीक्षण किए जा रहे हैं।

इतना ही नहीं, खुदाई में मिले पाषाण काल के हथियार, हड़प्पा से भी पहले के आभूषण, और शंख से बने अलंकरण भारत की प्राचीन संस्कृति, शिल्पकला और तकनीकी उन्नति के अद्भुत प्रमाण हैं।

यह खुदाई न केवल भारतीय इतिहास को फिर से लिखने की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि भारत की सभ्यता प्राचीनतम और वैज्ञानिक रूप से समृद्ध रही है। डीग की ये ऐतिहासिक परतें हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि जो कुछ हम मिथक मानते थे, वह वास्तव में भारत का गौरवशाली इतिहास हो सकता है।