
उदयपुर में आरएनटी मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल ने राजस्थान की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को बुरी तरह झकझोर दिया है। दिलशाद हॉस्टल में डॉ. रवि शर्मा की संदिग्ध मौत के बाद शुरू हुए विरोध-प्रदर्शन के पांच दिन बीत चुके हैं, लेकिन हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते जा रहे हैं। एमबी अस्पताल सहित अन्य 5 प्रमुख सरकारी अस्पतालों में ओपीडी, इमरजेंसी और ऑपरेशन थियेटर लगभग ठप पड़ चुके हैं।
पांच दिन में 450 से अधिक ऑपरेशन टले, मरीज बेहालरेजिडेंट डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी से अब तक 450 से ज्यादा रूटीन ऑपरेशन टाले जा चुके हैं। हजारों मरीज रोज अस्पताल पहुंच रहे हैं लेकिन उन्हें इलाज नहीं मिल पा रहा। कई मरीज लाइन में घंटों खड़े रहने के बावजूद बिना उपचार के लौट रहे हैं। कुछ मरीज अस्पताल की भीड़ देखकर ही वापस चले जा रहे हैं।
सिर्फ 150 फैकल्टी डॉक्टरों के भरोसे चल रही व्यवस्थाआरएनटी मेडिकल कॉलेज में करीब 800 रेजिडेंट डॉक्टर हैं, जो एमबी अस्पताल, जनाना हॉस्पिटल, बाल चिकित्सालय और अन्य सैटेलाइट यूनिट्स में सेवाएं देते हैं। लेकिन हड़ताल के कारण अब पूरा सिस्टम सिर्फ 150 फैकल्टी डॉक्टरों के भरोसे चल रहा है।
यह व्यवस्था ओपीडी, आईपीडी और यहां तक कि 24 घंटे चलने वाली इमरजेंसी सेवाओं पर भी भारी पड़ रही है। जनाना अस्पताल की हालत तो और भी खराब है। जहां रोज 90 से 100 डिलीवरी केस होते हैं, वहां अब अस्थायी डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के भरोसे काम हो रहा है।
रेजिडेंट्स की मांगें और प्रशासनिक चुप्पीरेजिडेंट डॉक्टर डॉ. रवि शर्मा की मौत के जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। सोमवार को भी डॉक्टरों ने प्रशासनिक भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और पूरे अस्पताल परिसर में रैली निकाली। तख्तियां और नारेबाजी के बीच डॉक्टरों ने साफ किया कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, हड़ताल जारी रहेगी।
इस हड़ताल का असर सिर्फ उदयपुर तक सीमित नहीं रहा, जयपुर सहित राज्यभर के मेडिकल कॉलेजों में रेजिडेंट डॉक्टर दो घंटे की प्रतीकात्मक हड़ताल पर रहे, जिससे वहां भी चिकित्सा सेवाओं पर असर पड़ा।
ओपीडी में गिरावट, इलाज अधूरा, मरीज असहायएमबी चिकित्सालय में सामान्यतः रोज 6500 से 7000 मरीज ओपीडी में आते हैं। लेकिन हड़ताल के कारण यह संख्या घटकर 4500–5000 के बीच रह गई है। लाइन में लगने वाले मरीजों को पर्ची पर पेनकिलर लिखकर लौटा दिया जा रहा है। न तो एक्स-रे हो पा रहे हैं, न ही ब्लड टेस्ट या अन्य सामान्य जांचें।
कई मरीज खुद ही दवाएं लेने से इनकार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें संतोषजनक परामर्श नहीं मिल पा रहा। सोमवार को एमबी अस्पताल की ओपीडी में कुल 4857 मरीज पहुंचे, जिनमें से 218 को भर्ती किया गया, और सिर्फ 37 इमरजेंसी ऑपरेशन ही हो पाए।
सवाल प्रशासन पर: कब तक चलेगी हड़ताल?प्रशासन की भूमिका अभी तक केवल मूकदर्शक जैसी रही है। ना तो डॉक्टरों को समझाने की पहल हो रही है, और ना ही मरीजों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई है। यह स्थिति न केवल गंभीर है, बल्कि राज्य के हेल्थकेयर सिस्टम पर सवालिया निशान भी खड़ा कर रही है।
डॉ. रवि शर्मा की मौत अब केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं रही, बल्कि यह राजस्थान की स्वास्थ्य व्यवस्था की असली तस्वीर को सामने ला चुकी है। एक डॉक्टर की असामयिक मृत्यु और उसके बाद उपजे रोष को प्रशासन अगर समय पर संभाल नहीं पाया, तो आने वाले दिनों में चिकित्सा सेवाएं पूरी तरह ठप हो सकती हैं।
जरूरत है कि सरकार इस मुद्दे को संवेदनशीलता से समझे और डॉक्टरों की मांगों पर यथोचित निर्णय ले, ताकि आम नागरिकों को उनके इलाज के मौलिक अधिकार से वंचित न रहना पड़े।