हिंदी थोपे जाने के विरोध में एकजुट हुए राज-उद्धव, 5 जुलाई को मुंबई में दिखेगा मराठी अस्मिता की हुंकार

महाराष्ट्र की सियासत में भाषा को लेकर घमासान और भी तेज़ होता जा रहा है। हिंदी और मराठी को लेकर छिड़े इस ताजा विवाद में अब दो चचेरे भाई—शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे—ने अप्रत्याशित रूप से एक ही मंच साझा करने का निर्णय लिया है। ये दोनों अब 5 जुलाई को राज्य सरकार के त्रिभाषा फार्मूले के विरोध में साझा मोर्चा निकालेंगे।

ठाकरे बंधु इस बात को बार-बार दोहरा रहे हैं कि वे हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे जबरन थोपे जाने के किसी भी प्रयास का वे खुलकर विरोध करते रहेंगे।

राजनीति से परे, क्या यह सांस्कृतिक अस्मिता की लड़ाई है?


राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं गर्म हैं कि क्या बीएमसी चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह एक रणनीतिक कदम है? या फिर वाकई में यह मराठी अस्मिता की रक्षा का मुद्दा है? शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने साफ किया कि दोनों भाई केवल जनता की भलाई और मराठी भाषा के सम्मान के लिए साथ आए हैं।

संजय राउत की भावनात्मक पोस्ट ने दिलों को छुआ

संजय राउत ने एक बेहद भावुक कर देने वाली तस्वीर साझा की जिसमें उद्धव ठाकरे अपने पिता और शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के साथ दिख रहे हैं। कैप्शन में उन्होंने लिखा—“महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी थोपने के खिलाफ हम सब एकजुट हैं, जय महाराष्ट्र!”

भाईचारे की मिसाल बनी एक कॉल

राउत ने बताया कि राज ठाकरे ने उन्हें फोन करके कहा कि वे 6 जुलाई को विरोध प्रदर्शन निकालना चाहते हैं, जबकि उद्धव 7 जुलाई को। फिर दोनों ने सोचा कि क्यों न एकसाथ निकला जाए, ताकि मराठी जनता को भी लगे कि उनके नेता उनके साथ हैं। लेकिन 7 जुलाई को एकादशी का पर्व होने की वजह से तारीख बदलकर 5 जुलाई कर दी गई।

धार्मिक भावनाओं का रखा गया ध्यान

राज ठाकरे ने 6 जुलाई को विरोध की घोषणा की थी, लेकिन आषाढ़ी एकादशी के चलते विरोध प्रदर्शन की तारीख बदल दी गई और 5 जुलाई तय की गई। उन्होंने यह बदलाव भी सोशल मीडिया पर साझा कर मराठी जनता की भावनाओं का सम्मान किया।

हिंदी नहीं, थोपे जाने की प्रवृत्ति से आपत्ति: उद्धव ठाकरे

उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किए जाने का विरोध कर रहे हैं। उनके मुताबिक यह सिर्फ एक शैक्षिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने का प्रयास है।

भाषा का बोझ नहीं, गुणवत्ता में सुधार हो: आदित्य ठाकरे

शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने सरकार से सवाल करते हुए कहा कि जब पहले से मौजूद शिक्षा व्यवस्था में खामियां हैं, तो नई भाषा जोड़ने के बजाय उसकी गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है?

शरद पवार की भी कड़ी प्रतिक्रिया

कांग्रेस नेता शरद पवार ने भी स्पष्ट किया कि प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य बनाने से बच्चों पर अनावश्यक भाषाई बोझ पड़ेगा। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि हिंदी पढ़ाई भी जाए, तो वह विकल्प के रूप में होनी चाहिए, अनिवार्यता के रूप में नहीं।

विवाद की जड़ में सरकारी फरमान


दरअसल, महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने कुछ समय पहले आदेश जारी किया था कि राज्य के सभी स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को भी अनिवार्य किया जाएगा। इसी आदेश के विरोध में अब विपक्षी दल एकजुट हो चुके हैं।