
दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद गैंगस्टर काला जठेड़ी एक बार फिर चर्चा में है—इस बार अपराध की वजह से नहीं, बल्कि पिता बनने की प्रक्रिया के चलते। अदालत की अनुमति से जठेड़ी ने आईवीएफ (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन) तकनीक के ज़रिए संतान प्राप्ति के प्रयास शुरू कर दिए हैं। जेल की दीवारों के भीतर से बाहर भेजा गया स्पर्म अब इस बहुचर्चित अपराधी के जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है।
तिहाड़ से IVF की राह पर काला जठेड़ीगैंगस्टर संदीप उर्फ काला जठेड़ी, जो लंबे समय से तिहाड़ जेल में बंद है, ने अदालत से अनुमति लेकर अपने स्पर्म का नमूना एकत्र कर IVF प्रक्रिया के लिए भेजा है। यह प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय रखी गई और मेडिकल प्रोटोकॉल के तहत संपन्न हुई। अदालत ने इस उद्देश्य के लिए उसे छह घंटे की अंतरिम हिरासत पैरोल की अनुमति दी थी ताकि आवश्यक चिकित्सा प्रक्रिया हो सके।
14 जून को सुबह 6 से 7 बजे के बीच यह प्रक्रिया की गई। सूत्रों के अनुसार, गुरुग्राम की आईवीएफ टीम ने जेल परिसर में आकर स्पर्म सैंपल एकत्रित किया और निर्धारित समय के भीतर उसे ले जाकर लैब में संरक्षित किया गया।
कोर्ट का मानवीय दृष्टिकोणदिल्ली की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश दीपक वाल्सन ने काला जठेड़ी की याचिका को यह कहते हुए स्वीकार किया कि उसका और उसकी पत्नी अनुराधा चौधरी का संतान पाने का अधिकार संवैधानिक रूप से मान्य है। कोर्ट ने 9 जून को दिए आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता अपनी वंश परंपरा को आगे बढ़ाना चाहता है, जो कि एक वैध और मानवीय कारण है।
साथ ही, कोर्ट ने जेल अधीक्षक और संबंधित जांच अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इस संवेदनशील चिकित्सा प्रक्रिया में पूरा सहयोग सुनिश्चित करें।
शादी के बाद उठाया पिता बनने का कदमजेल में रहते हुए ही पिछले साल मार्च में काला जठेड़ी ने अनुराधा चौधरी से विवाह किया था। शादी के बाद से ही दोनों बच्चे की योजना बना रहे थे। हालांकि जठेड़ी की जेल में उपस्थिति के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में आईवीएफ तकनीक का सहारा लेकर उन्होंने संतान प्राप्ति की योजना बनाई। इस प्रक्रिया में तकनीकी सहायता एम्स और गुरुग्राम स्थित आईवीएफ विशेषज्ञों की टीम ने दी।
एम्स की रिपोर्ट के अनुसार, आईवीएफ प्रक्रिया के लिए स्पर्म को एक घंटे के भीतर प्रयोगशाला में संरक्षित किया जाना जरूरी था। इसी के अनुसार जेल से सैंपल को भेजने की व्यवस्था की गई।
क्या है कानूनी और सामाजिक प्रभाव?यह मामला न केवल मेडिकल साइंस और जेल प्रशासन के समन्वय का उदाहरण है, बल्कि यह बहस का विषय भी बन गया है कि क्या एक सजायाफ्ता या विचाराधीन अपराधी को भी संतान प्राप्ति का अधिकार मिलना चाहिए। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह मानवाधिकारों का हिस्सा है, जबकि अन्य इसे एक गंभीर अपराधी को विशेष छूट देने की तरह देखते हैं।
गैंगस्टर काला जठेड़ी का यह कदम जेलों में बंद कैदियों के अधिकारों और मेडिकल तकनीक के उपयोग पर एक नई बहस की शुरुआत कर सकता है। अदालत का फैसला जहां मानवीयता को प्राथमिकता देता है, वहीं समाज में इस पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। अब देखने वाली बात होगी कि इस IVF प्रक्रिया का क्या परिणाम निकलता है और आगे ऐसी याचिकाओं को कैसे लिया जाएगा।