ज़मीन पर पेट के बल लेट जाएँ, पादांगुली और मस्तक ज़मीन पे सीधा रखें। पैर एकदम सीधे रखें, पाँव और एड़ियों को भी एकसाथ रखें| दोनों हाथ, दोनों कंधो के बराबर नीचें रखे तथा दोनों कोहनियों को शरीर के समीप और समानान्तर रखें। दीर्घ श्वास लेते हुए, धीरे से मस्तक, फिर छाती और बाद में पेट को उठाएँ। नाभि को ज़मीन पे ही रखें| अब शरीर को ऊपर उठाते हुए, दोनों हाथों का सहारा लेकर, कमर के पीछे की ओर खीचें।
गौर फरमाएँ: दोनों बाजुओं पे एक समान भार बनाए रखें। सजगता से श्वास लेते हुए, रीड़ के जोड़ को धीरे धीरे और भी अधिक मोड़ते हुए दोनों हाथों को सीधा करें; गर्दन उठाते हुए ऊपर की ओर देखें| गौर फरमाएँ: क्या आपके हाथ कानों से दूर हैं? अपने कंधों को शिथिल रखें। आवश्यकता हो तो कोहनियों को मोड़ भी सकते हैं। यथा अवकाश आप अभ्यास ज़ारी रखते हुए, कोहनियों को सीधा रखकर पीठ को और ज़्यादा वक्रता देना सीख सकते हैं। ध्यान रखें कि आप के पैर अभी तक सीधे ही हैं। हल्की मुस्कान बनाये रखें, दीर्घ श्वास लेते रहें [मुस्कुराते भुजंग]| अपनी क्षमतानुसार ही शरीर को तानें, बहुत ज़्यादा मोड़ना हानि प्रद हो सकता हैं। श्वास छोड़ते हुए प्रथमत: पेट, फिर छाती और बाद में सिर को धीरे से वापस ज़मीन ले आयें।