एकलव्य एक गरीब शुद्र परिवार से थे और द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करना करना चाहते थे, लेकिन उनके शुद्र परिवार से होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था| एकलव्य ने अपनी एकाग्रता का परिणाम तब दिया जब बिना किसी धनुर्विद्या के उन्होंने एक कुत्ते की आवाज़ सुनकर उसका मुँह तीरों से भेद दिया था| एकलव्य की एकाग्रता को देखकर ही द्रोणाचार्य खुश हुए परन्तु अपने प्रिये शिष्य अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनके दाहिने हाथ अंगूठा गुरुदक्षिणा के रूप में माँगा तो एकलव्य ने बिना किसी झिझक के अपना अंगूठा आचार्य को दे दिया|