हमारे देश की आजादी के पीछे कई लोगों की बहादुरी और उनका बलिदान हैं। देश की आजादी एक इतिहास में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जिनको कभी नहीं भुलाया जा सकता हैं। ऐसी ही एक घटना के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।, जो कि राजस्थान के राजपूतों की हैं और यह घटना 1857 के समय की हैं। इस घटना में एक राजा ने अपने किले के बाहर एक बड़े अंग्रेज अफसर का सर लटका दिया था और उसके बाद मेले का आयोजन किया गया था। तो आइये जानते है इस घटना के बारे में।
ये राजा थे “ठाकुर कुशाल सिंह आउवा”। 1857 में राजस्थान क्रांति के पूर्व जहाँ राजस्थान में अनेक शासक ब्रिटिश भक्त थे, वहीं राजपूत सामन्तों का एक वर्ग ब्रिटिश सरकार का विरोध कर रहा था। अत: उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । इस अवसर पर उन्हें जनता का समर्थन भी प्राप्त हुआ। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि राजस्थान की जनता में भी ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध असंतोष की भावनाएं विद्यमान थी। जोधपुर में विद्रोह जोधपुर के शासक तख्तसिंह के विरुद्ध वहाँ के जागीरदारों में घोर असंतोष व्याप्त था। इन विरोधियों का नेतृत्व पाली मारवाड़ आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह कर रहे थे ।
1857 में आउवा, पाली के ठाकुर कुशल सिंह जी राठौड़ ने जोधपुर राज्य से बगावत कर दी क्यों की जोधपुर के महाराजा तखत सिंह जी उस वक़्त ब्रिटिश गोवेर्मेंट और ईस्ट इंडिया कंपनी का साथ दे रहे थे ठाकुर कुशल सिंह का गोडवाड़ के ज्यादातर ठाकुरो ने साथ दिया।
1857 की क्रांति में में मारवाड़ /मेवाड़/गोडवाड़ के 30 से ज्यादा ठाकुरो ने जोधपुर स्टेट से बगावत कर ठाकुर कुशल सिंह जी का साथ दिया जिस में एरिनपुरा सुमेरपुर पाली की राजपूत आर्मी भी शामिल हो गयी अजमेर से पहले पाली अजमेर की सरहद पर भयानक लड़ाई हुयी और ब्रिटिश और जोधपुर राज्य की की सयुक्त सेना की अप्रत्यक्ष रूप से हार हुयी ठाकुर कुशल सिंह ने भंयकर युद्ध किया। २००० हजार सैनिको को मार डाला और तोपखाने की तोपे छीन ली। ब्रिगेडियर जनरल सर पैट्रिक लारेंस मैदान छोड़ कर भाग गया। इतनी बड़ी पराजय से फिरंगीयों को होश ऊड गये।
तभी आउवा ठाकुर वहाँ के कप्तान मोंक मेंसेंन का सिर काट कर आपने घोड़े पर बांधकर अपने किले पर ले आये दूसरे ठाकुरो ने भी दूसरे ब्रिटिश गोरो का सिर काट कर ऐसा ही किया।
इस लड़ाई के बाद अंग्रेज राजपूताने में आपने पाँव नही जमा पाये और पुरे राजस्थान में अजमेर शहर को छोड़ कही अपनी ईमारत तक नही बना पाये। और उस दिन सारे गाव में जश्न हुआ जो आज भी मेले के रूप में पाली जिले के “आउवा” गाव में मनाया जाता है।