क्या है अनुच्छेद 370, आखिर क्यों जम्मू कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता है?

जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और सैन्य हलचलों के बीच लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे है। सब जगह सिर्फ एक ही चर्चा है आखिर कश्मीर में क्या होने वाला है। इन सवालों के बीच लोगों को के मन में संविधान के आर्टिकल 370 (Article 370) को लेकर भी सवाल बना हुआ है। आखिर क्या है आर्टिकल 370 और कैसे ये जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती है आज हम इसी को विस्तार से आपको बताने जा रहे है।

- आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देता है। इस आर्टिकल के चलते जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता, झंडा भी अलग है।

- जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है। देश के सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते हैं।

- संसद जम्मू-कश्मीर को लेकर सीमित क्षेत्र में ही कानून बना सकती है। रक्षा, विदेश, संचार छोड़कर केंद्र के कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते।

- केंद्र का कानून लागू करने के लिये जम्मू-कश्मीर विधानसभा से सहमति ज़रूरी। वित्तीय आपातकाल के लिए संविधान की धारा 360 जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं। धारा 356 लागू नहीं, राष्ट्रपति राज्य का संविधान बर्खास्त नहीं कर सकते।

- कश्मीर में हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों को 16% आरक्षण नहीं मिलता। जम्मू कश्मीर में 1976 का शहरी भूमि कानून लागू नहीं होता है। धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI और RTE लागू नहीं होता। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष नहीं, 6 वर्ष होता है।

- आर्टिकल 370 में जिन मामलों पर भारत के संसद को कानून बनाने का अधिकार है वो डिफेंस, विदेश और वित्तीय मामले हैं। यानि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में सिर्फ इन मामलों पर कानून बना सकती है। इसके अलावा अगर केंद्र सरकार को किसी अन्य मसले पर जम्मू-क्शमीर के लिए कानून बनाना है तो उन्हें जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी।

- आर्टिकल 370 अस्थायी प्रावधान है जो हालात सामान्य होने तक के लिए बनाया गया था। संविधान निर्माताओं ने यह कभी नहीं सोचा था कि आर्टिकल 370 के नाम पर 35A जैसा प्रावधान जोड़ा जाएगा। आर्टिकल 35A एक विधान एक संविधान एक राष्ट्रगान एक निशान की भावना पर चोट करता है। जम्मू कश्मीर में दूसरे राज्यों के नागरिकों को समान अधिकार न होना संविधान के मूल भावना के खिलाफ है। आर्टिकल 35A का इतिहास तस्दीक करता है कि इसे राष्ट्रपति के एक आदेश से संविधान में 1954 में जोड़ा गया था। यह आदेश तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट की सलाह पर जारी हुआ था।

अब सवाल उठता है कि क्या आर्टिकल 370 को हटाया जा सकता है। इसका जवाब भी अनुच्छेद 370 में ही दर्ज है। इसका क्लाउस तीन कहता है कि अगर जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा अनुच्छेद 370 को खत्म करने को कहती है तो इसे खत्म किया जा सकता है। लेकिन पेंच यह है कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को 1957 में भंग कर दिया गया था। अब सवाल यही है कि संविधान सभा जो पहले ही भंग हो गई है तोअब उसके बाद 370 के क्लाउस तीन का कोई मायने नहीं रह गया है। ऐसे में क्या अनुच्छेद 370 को खत्म किया जा सकता है इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है। ताजा घटना क्रम में यही लगता है कि केंद्र सरकार कोई ठोस कदम उठाने वाली है।