अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है 'भारत छोड़ो आन्दोलन' को

हमारा भारत देश कई सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा हैं और कड़ी मेहनत और कई लोगों के अथक प्रयासों के बाद 15 अगस्त, 1947 को पूर्ण रूप से आजाद हुआ हैं। इस आजादी को पाने के लिए देश में कई आन्दोलन हुए हैं, जिसमें से एक हैं "अंग्रेजों भारत छोड़ो" आन्दोलन। इस आन्दोलन का आगाज 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने की थी। यह महात्मा गांधी का तीसरा मुख्य आंदोलन था, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से जाना गया। लगभग 2 महीने चलने वाले इस आन्दोलन की रूपरेखा काफी समय से चली आ रही थी। आज हम आपको इस आन्दोलन के प्रस्ताव से जुडी जानकारी बताने जा रहे हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ होने के बाद कांग्रेस और सरकार में कोई समझोता नहीं हो पाने के कारण अंत में कांग्रेस ने एक ठोस और प्रभावी आंदोलन करने का निर्णय लिया गांधीजी ने कांग्रेस को अपने प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किए जाने की स्थिति में चुनौती देते हुए कहा मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा में अपनी बैठक में आंदोलन प्रारंभ करने हेतु गांधी जी को अधिकृत कर दिया।

वर्धा बैठक में गांधी जी ने कहा कि भारतीय समस्या का समाधान अंग्रेजो द्वारा भारत छोड़ देने में ही है इस वर्धा बैठक में गांधी जी के विचार को पूर्ण समर्थन मिला कि भारत में संवैधानिक गतिरोध तभी दूर हो सकता है जब अंग्रेज भारत से चले जाएंगे वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति ने अंग्रेजो भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गांधीजी के इस प्रस्ताव को वर्धा प्रस्ताव कहते हैं।