8 अगस्त, 1942 को बंबई अधिवेशन में महात्मा गांधी ने "अंग्रेजों भारत छोड़ो" आन्दोलन का आगाज किया था और पूरा देश उनके इस आन्दोलन को सफल बनाने में लग गई थी। हांलाकि यह आन्दोलन पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाया। इस आन्दोलन में कई लोग शहीद हो गए। आज हम आपको इसी आन्दोलन की एक घटने के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें कुछ स्कूली छात्रों ने तिरंगा फहराने की इच्छा रखते हुए शहीद हो गए। तो आइये जानते हैं इस घटना के बारे में।
जनपद का स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान रहा है। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में जहां कुंअर निरंजन जू देव, राजा रूप सिंह ऐसे तमाम रणबांकुरों ने ब्रिटिश हुकूमत को नाको चने चबवाते हुए औरैया को लंबे समय तक स्वाधीन बनाए रखे था। इसके बाद महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन में भी नौजवानों ने योगदान दिया है।
महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेज भारत छोड़ो के आह्वान पर जनपद में 11 अगस्त 1942 को विद्यार्थी कांग्रेस ने बैठक पुराने नुमाइश मैदान में बुलाई जिसका नेतृत्व छक्की लाल दुबे व बलदेव प्रसाद ने किया। बैठक समाप्त करने के लिए थानेदार राम स्वरूप व दीवान छुंट्टन पहुंचे तो बैठक में शामिल नेताओं व उनके बीच वाद विवाद हुआ। इसके बाद थानेदार धमकी देते हुए वहां से चला गया। बैठक में निर्णय लिया गया कि तहसील भवन से यूनियन जैक उतार कर तिरंगा फहराया जाएगा।
पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई से बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हो जाने से आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया था। नौजवान शिवशंकर लाल, वनस्पति सिंह आदि के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया गया। जिसमें एवी हाईस्कूल (अब तिलक इंटर कालेज) व संस्कृत पाठशाला के विद्यार्थियों ने अपने विद्यालय छोड़ दिए और पुरानी धर्मशाला (अब संकट मोचन धर्मशाला) में एकत्र हो गए। जुलूस में खानपुर, दयालपुर, पैगम्बरपुर आदि ग्रामीण क्षेत्रों के भी लोग शामिल हुए। करीब दस बजे पुरानी धर्मशाला से विशाल जुलूस स्वर्णिम इतिहास रचने के लिए पुराने तहसील भवन के लिए रवाना हुआ।
थाना इंचार्ज जगन्नाथ सिंह, सर्किल इंस्पेक्टर रामजी लाल ने शांतिपूर्वक जुलूस वापस ले जाने के लिए कहा, लेकिन छात्रों ने उनकी न सुनी। तहसील भवन की छत पर जाने के लिए जब कोई रास्ता नहीं मिला तो कौशल किशोर शुक्ला, मंगली प्रसाद आदि व अन्य छात्र एवी हाईस्कूल से नसेनी उठा लाए। नसेनी पर जैसे ही छात्रों ने चढ़ना शुरू किया तो पुलिस ने लाठी बरसानी शुरू कर दी। लाठी चार्ज होते ही सभी अधिकारी अंदर चले गए और पुलिस ने तहसील भवन में सामने स्थित गोली चलानी प्रारंभ कर दी।
पहले तो हवा में गोली दागी गई जब छात्र नहीं माने तो जुलूस पर सीधी गोली दागी जाने लगी। शामिल छात्रों ने चहारदीवारी तोड़कर खिड़की पर ईंट पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। कल्यान चन्द्र पुत्र गणेश प्रसाद, खरका निवासी मंगली प्रसाद पत्थर चलाते हुए गोली लगने से शहीद हो गए। भैसा ठेला पर सवार सुल्तान खां, दर्शन लाल, बाबूराम, भूरे लाल पुलिस की गोलीबारी से शहीद हुए वहीं वीरेन्द्र सिंह, छुन्नू लाल, विजय शंकर गुप्ता सहित एक दर्जन लोग पुलिस की गोलियों के शिकार हुए। वहीं जुलूस का नेतृत्व कर रहे शिव शंकर व वनस्पति सिंह, कन्हैया लाल आदि लोगों को फाटक के अंदर बंद कर बर्बरता पूर्वक लाठियां बरसाई गई। वहीं नगर में कर्फ्यू लगा दिया गया। तमाम लोगों को घर से खींचकर जेल में डाल दिया गया।