आतंकवादियों को मारने में कोई नियम नहीं, जहाँ दिखे वहाँ मारो: विदेश मंत्री

नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत सीमा पार से होने वाले किसी भी आतंकवादी कृत्य का जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि आतंकवादी किसी नियम को नहीं मानते। वह किसी नियम का पालन नहीं करते हैं तो उनपर लगाम लगाने की कार्रवाई को नियमों में कैसे कोई बांध सकता है? आतंकवादियों को जवाब देने में देश के पास कोई नियम नहीं हो सकता है।
पुणे में शुक्रवार को 'भारत क्यों मायने रखता है: युवाओं के लिए अवसर और वैश्विक परिदृश्य में भागीदारी' विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में युवाओं के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने पूछा कि अगर अब इसी तरह का हमला होता है और कोई इस पर प्रतिक्रिया नहीं देता है तो आगे ऐसे हमलों को कैसे रोका जा सकता है? उन्होंने 2008 में 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों को लेकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार पर हमला करते हुए कहा कि सरकारी स्तर पर बहुत विचार-विमर्श के बाद भी उस समय कुछ भी सार्थक परिणाम नहीं निकला। पाकिस्तान पर हमला करना उस पर हमला न करने से कहीं अधिक था और यह महसूस किया गया था कि इसकी कीमत बहुत ज्यादा चुकानी पड़ेगी।
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आतंकवाद के मुद्दे पर दो टूक कहा कि 2014 के बाद से भारत की विदेश नीति में बड़ा बदलाव आया है और आतंकवाद से निपटने का यही सही तरीका है। उन्होंने कहा कि आतंकी जब नियम से नहीं खेलते हैं तो फिर उन पर पलटवार, नियम के तहत कैसे होगा?

पुणे में अपनी किताब ‘Why Bharat Matters’ के एक कार्यक्रम के दौरान एस जयशंकर ने कहा है कि इस मामले में किसी भी तरह के नियमों का पालन तो होना ही नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि आतंकी जहां भी दिखें, उन्हें मौका मिलते ही मार देना चाहिए।

खास बात यह रही कि उस कार्यक्रम के दौरान एस जयशंकर से यह भी पूछा गया कि भारत को किन देशों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने में सबसे ज्यादा समस्या होती है। जयशंकर ने इस सवाल का जवाब में पाकिस्तान का नाम तो नहीं लिया लेकिन कहा कि वह मुल्क पड़ोस में है और इसके लिए केवल हम ही जिम्मेदार हैं।

एस जयशंकर ने कहा कि 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया था। भारतीय सेना ने उनका मुकाबला किया और राज्य का भारत में विलय हो गया। उन्होंने आगे कहा कि जब भारतीय सेना कार्रवाई कर रही थी, तब हम रुक गए और संयुक्त राष्ट्र (UN) में गए और हमलावरों को आतंकवादियों के बजाय कबायली घुसपैठिए बताया।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अगर हम शुरू से ही यह स्पष्ट कर देते कि पाकिस्तान आतंकवाद का इस्तेमाल कर रहा है, तो हमारी नीति बहुत अलग होती। इस दौरान उन्होंने कहा कि किसी भी हालत में आतंकवाद को स्वीकार नहीं किया जा सकता।



1947 में ही पैदा हो चुकी थी आतंकवाद की समस्या

जयशंकर ने कहा, 2014 में मोदी जी आए। लेकिन यह समस्या (आतंकवाद) 2014 में शुरू नहीं हुई। इसकी शुरुआत मुंबई हमले से नहीं हुई। इस समस्या का जन्म 1947 में हुआ। 1947 में पहले लोग (आक्रांता) कश्मीर आए, उन्होंने कश्मीर पर हमला किया यह आतंकवादी घटना ही थी। वे गांवों और कस्बों को जला रहे थे। ये लोग पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के आदिवासी थे। हमने सेना भेजी और कश्मीर का एकीकरण हुआ।

उन्होंने कहा, जब भारतीय सेना कार्रवाई कर रही थी, हम बीच में रुक गए और संयुक्त राष्ट्र में जाकर उल्लेख किया कि हमला आतंकवाद के बजाय आदिवासी आक्रमणकारियों द्वारा किया गया था, इस बात से आतंकवाद को एक वैधता सी मिल गई। उन्होंने कहा कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान ने सबसे पहले घुसपैठियों को तोड़फोड़ के लिए भेजा था।

आतंकवाद को लेकर हमें अपने मन में साफ होना होगा

उन्होंने कहा, आतंकवाद के बारे में हमें अपने मन में बहुत स्पष्ट होना होगा। किसी भी परिस्थिति में किसी भी पड़ोसी या किसी ऐसे व्यक्ति से आतंकवादी गतिविधि स्वीकार्य नहीं है जो आपको बातचीत की मेज पर बैठने के लिए मजबूर करने के लिए आतंकवाद का इस्तेमाल करता हो। इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, एक बदलाव आतंकवाद को लेकर है। 26/11 के मुंबई हमले के बाद देश में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसने महसूस किया हो कि हमें हमले का जवाब नहीं देना चाहिए था। देश में हर किसी ने इसे महसूस किया।

जयशंकर ने कहा कि सबने विचार-विमर्श किया, खूब विश्लेषण हुआ और फिर तय हुआ कि पाकिस्तान पर हमला करने की कीमत पाकिस्तान पर हमला न करने से ज्यादा है इसलिए काफी विचार-विमर्श के बाद कोई नतीजा नहीं निकला।''