बाल विवाह पर NCPCR की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बाल अधिकार संस्था एनसीपीसीआर की उस याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें इस जटिल कानूनी प्रश्न पर आधिकारिक घोषणा की मांग की गई है कि क्या बाल विवाह निषेध संबंधी धर्मनिरपेक्ष कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ पर प्रभावी होगा।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अनुरोध किया कि बाल विवाह के मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा व्यक्त किए गए अलग-अलग विचारों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की याचिका पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई की जाए।

विधि अधिकारी ने कहा कि कुछ उच्च न्यायालय इस मुद्दे पर व्यक्तिगत कानूनों का संज्ञान ले रहे हैं और परस्पर विरोधी निर्णय दिए जा रहे हैं तथा इससे शीर्ष अदालत में कई विशेष अनुमति याचिकाएं (एसएलपी) दायर की जा सकती हैं।

विधि अधिकारी ने कहा, विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अलग-अलग विचार लिए जा रहे हैं। मुद्दा यह है कि एक धर्म या दूसरे धर्म में बाल विवाह की अनुमति है या नहीं। हम (एनसीपीसीआर) संवैधानिक सिद्धांतों पर बहस कर रहे हैं।

उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि एनसीपीसीआर की 2022 की याचिका को किसी भी बुधवार या गुरुवार को सूचीबद्ध किया जाए क्योंकि विभिन्न उच्च न्यायालयों के नए फैसले सुनाए जा रहे हैं और अपीलों की संख्या बढ़ रही है।

सीजेआई ने कहा, हमें मामले को तुरंत निपटाना होगा और याचिका को जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।

एनसीपीसीआर की याचिका मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई थी और कराधान विवाद से संबंधित याचिकाओं के एक बैच पर चल रही कार्यवाही के कारण इसकी सुनवाई होने की संभावना नहीं थी।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2022 में 'जावेद बनाम हरियाणा राज्य' नामक मामले में दिए गए अपने फैसले में कहा था कि एक मुस्लिम लड़की, यौवन प्राप्त करने के बाद, इस तथ्य के बावजूद कि वह प्रासंगिक धर्मनिरपेक्ष कानूनों के तहत वयस्क नहीं हुई है, वैध विवाह में प्रवेश कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने एनसीपीसीआर की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया था कि पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को अन्य मामलों में मिसाल के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए।

बाद में, केरल उच्च न्यायालय ने विपरीत दृष्टिकोण अपनाया और कहा कि पर्सनल लॉ के तहत मुसलमानों के बीच विवाह को POCSO अधिनियम से बाहर नहीं रखा गया है और इसके तहत नाबालिग के यौन शोषण के अपराध के लिए व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है।