स्वतंत्रता दिवस विशेष : एक नाले की वजह से गई थी रानी लक्ष्मीबाई की जान

रानी लक्ष्मीबाई का नाम सुनते ही सभी के जहन में ये पंक्तियाँ उठती हैं "बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।" और आनी भी चाहिए आखिर उन्होंने काम ही ऐसा किया था। देश की आजादी के लिए जब 1857 की पहली क्रांति की शुरुआत हुई तब रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी वीरता दिखाते हुए अंग्रजों का मुकाबला किया और कोशिश करी की अंग्रेजों को झांसी में घुसने तक नहीं दिया जाए। इसी जज्बे और बहादुरी को देखते हुए आज हम आपको रानी लक्ष्मीबाई और उनका स्वतंत्रता संग्राम में किया गया संघर्ष बताने जा रहे हैं।

1857 में मेरठ से युद्ध का आगाज हो चुका था। हिंसा की चपेट में झांसी भी आया। 1857 में सितंबर या अक्टूबर में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण कर दिया परंतु रानी लक्ष्मीबाई ने उसे विफल कर दिया। जनवरी 1857 में अंग्रेजों की सेना ने झांसी की ओर बढ़ना प्रारंभ किया और मार्च में पूरे झांसी शहर को घेर लिया, दो हफ्तों की लड़ाई के बाद अंग्रेजी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया परंतु रानी लक्ष्मीबाई अपने पुत्र दामोदर राव को ले कर भागने में सफल रहीं। झांसी से भागकर लक्ष्मी बाई कालपी पहुंची और तात्या टोपे से जा कर मिल गई।

तात्या टोपे के साथ रानी लक्ष्मीबाई ने मिलकर ग्वालियर पर हमला बोल दिया और ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 17 जून 1858 को अंग्रेजों का सामना करते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने घोड़ा दौड़ाया परंतु दुर्भाग्यवश मार्ग में नाला आ गया और घोड़ा नाला पार न कर सका, अंग्रेजों की टुकड़ी जो पीछे से आ रही थी ने रानी के सिर और हृदय पर प्रहार कर दिया, घायल अवस्था में भी उस वीरांगना ने हार नहीं मानी और अंग्रेजो से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई।

1857 का युद्ध भारत में स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया प्रथम युद्ध था। भारत को स्वतंत्र कराने में रानी लक्ष्मीबाई के योगदान को कोई भुला नहीं सकता अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं की श्रेणी में रानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वप्रथम आता है। अंत समय में भी अंग्रेजों से लोहा लेने वाली इस वीरांगना के साहस और बलिदान को हमारा कोटि कोटि प्रणाम।