रविन्द्रनाथ टैगोर के अनमोल वचन जो हमें जीने की प्रेरणा देते है

गुरुदेव के नाम से जाने वाले रविन्द्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। टैगोर जी को उनकी रचना गीतांजलि के लिए वर्ष 1913 में नोबेल पुरूस्कार प्रदान किया गया था। इन्हीं की रचना आज हमारे देश का राष्ट्र-गान “जन गण मन” हैं। इसी के साथ इनकी दूसरी रचना बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान “आमार सोनार” बनी। आज हम आपको रविन्द्रनाथ टैगोर के अनमोल वचन के बारे में बताने जा रहे हैं जो हमको प्रेरणा देते हैं।

* प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है।
* प्रत्येक शिशु यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
* विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।
* फूल एकत्रित करने के लिए ठहर मत जाओ। आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।
* चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है।
* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी।
* केवल खड़े रहकर पानी देखते रहने से आप सागर पार नहीं कर सकते।
* हम यह प्रार्थना न करें कि हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि यह प्रार्थना करें कि हम उनका निडरता से सामना कर सकें।
* जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है, यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं।
* यदि आप सभी गलतियों के लिए दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जायेगा।
* जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है।
* मनुष्य जीवन महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।