भारत छोड़ो आन्दोलन देश के बड़े आंदलनों में से एक माना गया हैं और महात्मा गांधी का यह तीसरा बड़ा आन्दोलन था। इससे पहले गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन और संविनय अवज्ञा आंदोलन भी किये थे। लेकिन गांधी का यह आन्दोलन असफल रहा था। जिसके पीछे कई कारण थे जिसमें से मुख्य कारण था भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध देश की ही कई अन्य राजनीतिक संस्थाएं कर रही थी। आज हम आपको उन्हीं राजनीतिक संस्थाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होनें भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया था।
* मुस्लिम लीग मुस्लिम लीग का कहना था कि यदि तात्कालिक समय में ब्रिटिश भारत को इसी हाल में छोड़ के चली जाती है और भारत आज़ाद हो जाता है, तो मुस्लिमो को हिन्दूओं के अधीन हो जाना पड़ेगा। मुस्लिम हिन्दुओं द्वारा दबा दिए जायेंगे। मुहम्मद अली जिन्ना ने गाँधी के सभी विचारों को मानने से इनकार कर दिया और इस समय एक बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने अंग्रेजों का साथ दिया। मीडिया हिन्दू मुस्लिम भावनाओं के साथ खेल रही है के बारे में यहाँ पढ़ें।
* हिन्दू महासभा हिन्दू राष्ट्रवादियों ने भी इस आन्दोलान का खुल कर विरोध किया और औपचारीक तौर पर किसी भी तरह का समर्थन नहीं दिया। इन्हें भारत के विभाजन से परेशानी थी और ये एकछत्र अखंड भारत चाहते थे। इस संगठन के अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर, श्यामाप्रसाद मुख़र्जी आदि ने महात्मा गाँधी के विचारों के साथ से इनकार कर दिया और हिन्दू महासभा उनका साथ देने से पीछे हट गयी।
* भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इस आन्दोलन में अपनी सहभागिता दर्ज नहीं कराई। इस समय भारत में ब्रिटिश सरकार ने कम्युनिस्ट पार्टी पर बैन लगा रखी थी। कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों ने अपनी पार्टी से बैन हटाने और सोवियत यूनियन को जर्मनी के विरुद्ध युद्द में मदद करने के लिए ब्रिटेन सरकार की मदद की और बाद में ब्रिटिश सरकार ने कम्युनिस्ट पार्टी से देश में बैन हटा दिया।
* रियासतों द्वारा देशी रियासतों द्वारा भी इस आन्दोलन में भाग नहीं लिया गया। बल्कि इन्होने ब्रिटिश सरकार की मदद तक की।
* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भी भारत छोड़ो आन्दोलन को समर्थन नहीं दिया गया। भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा न लेने की वजह से इस संस्था को आम लोगों द्वारा तथा स्वयं इसके कुछ नेताओं द्वारा संघ को एक नाराजगी की नज़र से देखा जाने लगा। भारत छोड़ो आन्दोलन भारत से ब्रिटिश सत्ता को हटा कर आज़ादी लाने के लिये था, किन्तु इसी समय संघ का कोई भी योग्दान भारत की आज़ादी की लड़ाई में नहीं देखने को मिल पा रहा था। अतः लोगों में नाराजगी होनी आम बात थी।