राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 साल से कम आयु की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा के प्रावधान वाले दंड विधि (संशोधन) कानून, 2018 को मंजूरी दे दी है। गौरतलब है की इस विधेयक को लोकसभा ने गत 30 जुलाई को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था। उसके बाद छह अगस्त को राज्यसभा ने भी इस पर सहमति जताते हुए इसे मंजूरी दे दी थी। नया कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), भारतीय साक्ष्य अधिनियम-1972, दंड प्रक्रिया संहिता-1973 और लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 में संशोधन भी करेगा। साथ ही कठुआ और उन्नाव गैंगरेप के बाद 21 अप्रैल को लागू दंड विधि संशोधन अध्यादेश-2018 की जगह भी लेगा।
इस विधेयक में महिलाओं के साथ बलात्कार करने वाले दोषियों के लिए न्यूनतम सजा सात वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष करने का प्रावधान है। इसके साथ ही 16 वर्ष से कम की उम्र वाली बालिकाओं के साथ बलात्कार के अपराध में न्यूनतम सजा 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष करने का प्रावधान है।
12 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं के लिए न्यूनतम सजा 20 वर्ष कैद से लेकर मृत्युपर्यंत कारावास अथवा मृत्युदंड है। नए कानून में जांच प्रक्रिया को अनिवार्यतः दो महीने के अंदर पूरा करने तथा त्वरित अदालतों में तीन महीने के अंदर फैसले का प्रावधान है।
अभियुक्त को जमानत न मिल सके, इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों को सख्त किया गया है तथा पीड़ित को जल्द से जल्द और सुगम न्याय मिल सके, इसके अनुकूल बनाया गया है। मामले की सुनवाई महिला न्यायाधीश की अदालत में होगी।
पीड़ित का बयान महिला पुलिस अधिकारी ही दर्ज करेगी। गौरतलब है की जम्मू कश्मीर के कठुआ बलात्कार कांड और उत्तर प्रदेश के उन्नाव में हुए यौन उत्पीड़न कांड को लेकर देश भर में हुए व्यापक विरोध के मद्देनजर केंद्र सरकार ने कानून को सख्त बनाने के लिए गत 21 अप्रैल को अध्यादेश जारी किया था। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक अब कानून बन गया है और अब वह उस अध्यादेश का स्थान लेगा।